(रौज़ा ए मुबारक और नीर शरीफ)
रौज़ा ए मुक़द्दसा की तअमीर का काम गौसुल आलम की हयाते मुबारका ही में हुवा, मलिकुल अमरा हज़रत मलिक महमूद रहमतुल्लाहि अलैह ने तअमीर का काम अपने ज़िम्मा ए करम पर लिया, रौज़ा के उपर एक हुजरा तैयार किया गया, उस का नाम वहदताबाद रखा गया, और रौज़ा के चारों तरफ के इलाक़ा को कसरताबाद कहा गया, जैसा की अभी बताया जा चुका है।
नीर शरीफ का तालाब पहले मुख्तसर था हज़रत ने तीन तरफ से खुदाई करवाई, फावड़े (कुदाल) की ज़र्ब पर कलमा ए तैय्यबा पढ़ा जाता था, सात मर्तबा नीर शरीफ में आबे ज़मज़म डाला गया, यह पानी पागल, मसहूर और आसेब ज़दा के लिए आबे हयात का काम करता है हज़रत अब्दुल रहमान चिश्ती रहमतुल्लाहि अलैह फरमाते हैं कि इस हौज़ (नीर शरीफ) का पानी कभी गंदा नहीं होता इस से आसेब ज़दा शिफा पाते हैं।
अल हाज नुरुल ऐन रहमतुल्लाहि अलैह
हज़रत सैय्यद अल हाज अब्दुर्रज़्ज़ाक़ नुरुल ऐन रहमतुल्लाहि अलैह हसनी सैय्यद हैं।
आपको हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ ने 764 हिजरी में अपने फरज़ंदी में क़ुबूल फरमाया, आप हज़रात के खाला ज़ाद बहन के फरज़ंद थे वालिद का नाम सैय्यद अब्दुल गफूर हसन गैलानी था।
हुज़ूर के विसाल के बाद 808 हिजरी में आप सज्जादा नशीं हुए, आप क़ादिरुल कलाम शाइर भी थे, किछौछा शरीफ के सादात ए किराम उन्हीं के नस्ल से हैं।