(गुलबर्गा शरीफ व मर्तबा ए गौसियत)
गुलबर्गा गुलबर्गा शरीफ दक्कन जो हिंदुस्तान में अपनी उम्दा आबो हवा सर सब्ज़ो शादाबी के लिए अपनी मिसाल आप है यह बर्रे सगीर हिंदुस्तान का दूसरा कश्मीर है, हिंदुस्तान की सियाहत के दौरान जब हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ रज़ि अल्लाहु अन्ह तशरीफ लाए तो उस मक़ाम की आबो हवा आपको बहुत पसंद आई और एक बहुत ही पुर फज़ा मक़ाम पर आप का काफिला नूरो निकहत खेमा ज़न हुवा, आपकी वापसी के बाद इसी मक़ाम पर हज़रत बांदा नवाज़ गेसू दराज़ रहमतुल्लाहि अलैह की खान्क़ाह तअमीर हुई।
शब के वक़्त आप की क़साम गाह में अल हाज नुरुल ऐन और खादिम बाबा हुसैन के अलावा किसी और को हाज़िरी का हुक्म नहीं था, अलबत्ता कभी-कभी शैख कबीर को भी उसकी सआदत मेयसर हो जाती थी एक शब अजीब वाक़िआ रुनुमा हुवा कि तमाम असहाब गर्क़े हैरत हो गए, कि आप ने शैखुल इस्लाम गुजराती को अपने खेमा में तलब फरमाया जब शैखुल इस्लाम हुज़ूर की खिदमत में हाज़िर हुए
तो आप पर एक अजीब तरह की वजदानी कैफियत तारी थी, इस कैफियत का बयान मुश्किल था, यह देख कर हज़रत शैखुल इस्लाम पर ऐसी हैअत तारी हुई कि आप फौरन खेमा से बाहर चले आए, कुछ देर तक इसी इज़तराब में थे कि आप की ज़बाने मुबारका से यह आवाज़ निकली,
"الحمد اللّٰہ میسر آمد"
(खुदा का शुक्र है मिल गया) हज़रत नुरुल ऐन और शैख कबीर और शैखुल इस्लाम हज़रत के इस जुम्ला पर महू हैरत थे कि इस कैफियत का सबब क्या है ? और शुक्र नेअमत का मतलब क्या है ? लेकिन किसी में जराअत ना थी कि हज़रत से इज़तराब का सबब पुछे, मगर नुरुल ऐन ने हिम्मत कर के अहवाल दरियाफ्त किया आप ने फरमाया कि जिस गौसे ज़माना से मेरी पहली मुलाक़ात जबलुल फतह में हुई थी, आज वह दुनिया से रुखसत हो गए, अकाबिर रोज़गार और अक़ताब नामवर में से हर एक की ख्वाहिश थी कि यह ओहदा और मनसब आप को मिले लेकिन हक़ तआला ने अपने लुत्फो करम से इस हक़ीर के सर पर इज़्ज़त का ताज रखा, (मर्तबा ए गौसियत अता की)
बेशक अल्लाह बड़ा फज़ल करने वाला है वह जिसे चाहता है अपने फज़ल से नवाज़ता है फिर फरमाया कि गैस की नमाज़े जनाज़ा की इमामत हमेशा गैस ही करता है, लिहाज़ा मैंने उनकी नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और उनको दफन किया, वहां मौजूद हाज़िरीन ने आप को मुबारकबाद पेश करने की सआदत हासिल की उस रोज़ से आप गौसुल आलम हो गए, यह वाक़िआ एक रजब 770 हिजरी का है।