शर्मगाह का चूसना या चाटना कैसा है?

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शर्मगाह का चूसना या चाटना कैसा है?

 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में कि ओरल सेक्स करना  यानी शौहर व बीवी एक दूसरे के शर्मगाह को चूस सकते हैं या नहीं ? मुदल्लल व मुफस्सल जवाब दरकार है?

 साईल  सादिक़ अली

 जवाब  अल्लाह तआला ने जिस तरह से औरत को बाएसे तस्कीन बनाया है इसी तरह उस से नफा लेने का तरीक़ा भी इरशाद फरमाया है चुनांचा इरशाद ए रब्बानी है 

( نِسَآؤُكُمْ حَرْثٌ لَّكُمْ فَاْتُوْا حَرْثَكُمْ اَنّٰى شِئْتُمْ‘‘) 

 तुम्हारी औरतें तुम्हारे लिए खेतियां हैं, तो आओ अपनी खेती में जिस तरह चाहो, (कंज़ुल ईमान, सूरह बक़रा आयत नंबर २२३)

 यानी औरतों से औलाद का हुसूल मक़सूद है जिस के लिए फर्ज (औरत के आगे का मक़ाम) ही मुतअय्यन है और उस के अलावा जैसे दुबर (पीछे का मक़ाम) या मुंह .बे सूद हैं की उस से औलाद का हुसूल मुमकिन नहीं तो यह कारे ज़यां यकीनन जायज़ व दुरुस्त नहीं,

 अलबत्ता दीगर आज़ा ए बदन से फायदा उठाना मसलन पिस्तान चूमना, पेट, पीठ, कलाई, गला, गर्दन, पेशानी, को बोसा लेना चूमना जायज़ है, बल्कि अगर तरफैन के जोश बढ़ाने का मक़सद हो तो यह बाअसे सवाब भी है, मगर इसका मतलब यह हरगिज़ ना हुआ कि एक दूसरे के शर्मगाह को चूमे चाटे, क्योंकि यह जानवरों का तरीक़ा है,
ओरल सेक्स (oral-sex) शरअन नाजायज़ है, और कई वजूहात की बिना पर ना पसंदीदा व घटिया अमल है
(१) > यहूदो नसारा की पैरवी करना ।
(२) > बे हयाई करना।
(३) > गलाज़त मुँह में लेना या चाटना ।
(४) > मनी या मज़ी, का लुआब के साथ हलक़ से उतरना ।

अब मैं इन चारों पहलुओं पर तफसील से तहरीर करता हूं मुलाहिज़ा करें 

१ याहूदो नसारा की पैरवी करना ?

 शौहर व बीवी का एक दुसरे के शर्मगाह को चूमने चाटने को ओरल सेक्स (oral-sex) कहा जाता है यह जानवरों का तरीक़ा था मगर मगरिबी तहज़ीब के लोगों ने उसे एख्तियार कर लिया फिर ब्लू यानी सेक्सी फिल्म (BF) को देखने वाले घटिया क़िस्म के मुसलमानों ने अपना लिया
 जब कि पैग़ंबरे इस्लाम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान आली शान है 

(مَنْ تَشَبَّہَ بِقَوْ مٍ فَھُوَ مِنْھُمْ )
 (رواہ ابو داؤد ،مشکوٰۃ صفحہ ۳۷۵ ،کتاب اللباس فصل ثا نی)

 यानी जो किसी क़ौम से मुशाबहत करेगा तो वह उन्हीं में से होगा,

 तो मुसलमानों को चाहिए था कि अल्लाह और रसूल की पैरवी करते,
 इरशाद ए रब्बानी है 
(’یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْٓا اَطِیْعُوا اللّٰهَ وَ اَطِیْعُوا الرَّسُوْلَ ) 

 ऐ ईमान वालो हुक्म मानो अल्लाह का और हुक्म मानो रसूल का, (सुरह निसा ५९)

 मगर अफसोस सद अफसोस कि हम अपनी ख्वाहिशात के लिए यहूदो नसारा की पैरवी करने लग गए ठीक फरमाया था पैग़ंबरे इस्लाम ने 

( ’’لَتَتْبَعُنَّ سَنَنَ مَنْ كَانَ قَبْلَكُمْ شِبْرًا شِبْرًا، ‏‏‏‏‏‏وَذِرَاعًا بِذِرَاعٍ حَتَّى لَوْ دَخَلُوا جُحْرَ ضَبٍّ تَبِعْتُمُوهُمْ، ‏‏‏‏‏‏قُلْنَا:‏‏‏‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏الْيَهُودُ، ‏‏‏‏‏‏وَالنَّصَارَى، ‏‏‏‏‏‏قَالَ: فَمَنْ‘‘)

 तुम अपने से पहली उम्मतों की एक-एक बालिश्त और एक एक गज़ में इत्तिबा करोगे, यहां तक कि अगर वह किसी गोह (छिपकली से मिलता जुलता एक जानवर है उस) के सुराख में दाखिल हुए होंगे तो तुम उस में भी उन की इत्तिबा करोगे, हम ने (रावी हज़रत अबू सईद रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने) पूछा या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ! क्या यहूदो नसारा मुराद हैं ? फरमया फिर और कौन ? (यानी वही मुराद हैं) (सही बुखारी हदीस नंबर ७३२०)

     [ 2 ] बे हयाई करना ?

 बे हयाई किस क़दर ना पसंदीदा और घटिया अमल है हर ज़ी वक़ार शख्स को मालूम है इसी लिए अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने हमें बे हयाई से दूर रहने का हुक्म दिया है, इरशाद ए रब्बानी है 

( ’’اِنَّ اللّٰهَ یَاْمُرُ بِالْعَدْلِ وَ الْاِحْسَانِ وَ اِیْتَآئِ ذِی الْقُرْبٰى وَ یَنْهٰى عَنِ الْفَحْشَآءِ وَ الْمُنْكَرِ وَ الْبَغْیِۚ  یَعِظُكُمْ لَعَلَّكُمْ تَذَكَّرُوْنَ‘‘ )


 बेशक अल्लाह हुक्म फरमाता है इंसाफ और नेकी और रिश्तेदारों के देने का और मना फरमाता है बे हयाई और बुरी बात और सरकशी से तुम्हें नसीहत फरमाता है कि तुम ध्यान करो, (कंज़ुल ईमान, सूरह नहल ९०)

 नीज़ फरमाता है 

(’’وَ لَا تَقْرَبُوا الْفَوَاحِشَ‘‘)

 और बे हयाईयों के पास ना जाओ, (कंज़ुल ईमान, सुरह इनआम १५१)

 मज़कूरा बाला इबारत से ज़ाहिर हो गया कि बे हयाई कितना घटिया अमल है और किस क़दर रब तआला को नापसंद है, लिहाज़ा इस बे हयाई से दूर रहें और शैतान की पैरवी ना करें, क्योंकि शैतान तो चाहता ही है कि बंद ए मोमिन को बे हयाई और बुराई में मुलव्विस कर दे, इरशाद ए रब्बानी है 

(’یٰٓاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّبِعُوْا خُطُوٰتِ الشَّیْطٰنِ وَ مَنْ یَّتَّبِـعْ خُطُوٰتِ الشَّیْطٰنِ فَاِنَّهٗ یَاْمُرُ بِالْفَحْشَآءِ وَ الْمُنْكَر‘‘)
 
 ऐ ईमान वालो शैतान के क़दमों पर ना चलो और जो शैतान के क़दमों पर चले तो वह तो बे हयाई और बुरी ही बात बताएगा, (कंज़ुल ईमान, सूरह नूर आयत २१)

 नीज़ फरमाता है 

(’’اِنَّمَا یَاْمُرُكُمْ بِالسُّوْٓءِ وَ الْفَحْشَآءِ ‘‘)

 वह (शैतान) तो तुम्हें यही हुक्म देगा बदी और बे हयाई का, (कंज़ुल ईमान, सूरह बक़रा आयत १६९)

[ 3 ] गलाज़त मुँह में लेना या चाटना ।

 हमारा इस्लाम हमें पाकी व नज़ाफत का दर्स देता है हर वह चीज़ जो हमारे मुंह को पुरगंदा कर दे उस से बचने की तलक़ीन करता है, जैसे

(१)  खाने से पहले हाथ धोने का हुक्म है ताकि हाथ का मैल मुंह में ना जाने पाए
 हदीस शरीफ में है 

(’عن أم المؤمنين عائشة رضي الله عنها أن رسول الله صلى الله عليه وسلم كان إذا أراد أن ينام وهو جنب توضأ ، وإذا أراد أن يأكل غسل يديه۔(رواہ النسائي)

 हज़रते आईशा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है उन्होंने बयान किया कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम जब भी सोने का इरादा करते और आप हालते जनाबत में होते तो वज़ू करते और जब खाने का इरादा करते तो अपने दोनों हाथ धोते (निसाई)

 एक दूसरी हदीस में है 

(’الوضوء قبل الطعام حسنة، وبعد الطعام حسنتان‘‘)

 खाने से पहले हाथ धो लेना एक नेकी और खाने के बाद दो नेकियां है (कंज़ुल उम्माल)

(२)  सो कर उठने के बाद नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हाथ धोने का हुक्म दिया कि कहीं हाथ रात में शर्मगाह वगैरा में ना लगा हो और उसकी नजासत मुंह में दाखिल हो जाए, हदीस मुलाहिज़ा हो 

(’عَنْ أَبِي هُرَيْرَةَ، أَنّ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ , قَالَ: إِذَا اسْتَيْقَظَ أَحَدُكُمْ مِنْ نَوْمِهِ، فَلْيَغْسِلْ يَدَهُ قَبْلَ أَنْ يُدْخِلَهَا فِي وَضُوئِهِ، فَإِنَّ أَحَدَكُمْ لا يَدْرِي أَيْنَ بَاتَتْ يَدُهُ‘‘)

 हज़रत अबू हुरैरा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब तुम में से कोई नींद से जागे तो पानी वाले बर्तन में हाथ दाखिल करने से पहले वह अपने हाथ धो ले, इस लिए कि उसको यह मालूम नही कि रात सोते में उस का हाथ कहां कहां रहा, (मुअता इमाम मोहम्मद)

 दूसरी हदीस में है 

(’’‏‏‏‏‏‏عَنِ الْحَارِثِ، ‏‏‏‏‏‏قَالَ:‏‏‏‏ دَعَا عَلِيٌّبِمَاءٍفَغَسَلَ يَدَيْهِ قَبْلَ أَنْ يُدْخِلَهُمَا الْإِنَاءَ، ‏‏‏‏‏‏ثُمَّ قَالَ:‏‏‏‏ هَكَذَا رَأَيْتُ رَسُولَ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ صَنَعَ‘‘)

 हज़रत हारिस रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि हज़रत अली रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने पानी मंगाया और बर्तन में हाथ दाखिल करने से पहले दोनों हाथ धोए फिर कहा कि की रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मैं ने ऐसा ही करते देखा है, (सुनन इब्न माजा)

(३)  क़ज़ा ए हाजत के वक़्त दायां हाथ शर्मगाह को लगाने से नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना किया है, हदीस शरीफ में है 

( ’’لَا يُمْسِكَنَّ أَحَدُكُمْ ذَكَرَهُ بِيَمِينِهِ وَهُوَ يَبُولُ، وَلَا يَتَمَسَّحْ مِنَ الْخَلَاءِ بِيَمِينِهِ، وَلَا يَتَنَفَّسْ فِي الْإِنَاء‘‘) 

 तुम में से कोई भी पेशाब करते हुए अपना आला ए तनासुल दाएं हाथ से ना पकड़े, और ना ही दाएं हाथ से इस्तिंजा करे, और ना ही बर्तन में सांस ले, (सहीह मुस्लिम)

(४)  हुज़ूर अकरम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने हमें दाहिने हाथ से खाने का हुक्म फरमाया और बाएं हाथ से क़ज़ा ए हाजत का हुक्म फरमाया ताकि जिस हाथ से हम खाते हैं वह हाथ नजासत आलूदा ना हो, जैसा की हज़रते आईशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा से रिवायत है 

( ’’كَانَتْ يَدُ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ الْيُمْنَى لِطُهُورِهِ وَطَعَامِهِ، وَكَانَتْ يَدُهُ الْيُسْرَى لِخَلَائِهِ، وَمَا كَانَ مِنْ أَذًى‘)

 रसूलुल्लाह का दायां हाथ वज़ू और खाना खाने के लिए होता था और आपका बायां हाथ क़ज़ा ए हाजत और गंदगी वाले उमूर के लिए, (सुनन अबी दाऊद)

 एक दूसरी हदीस में है कि 

(’’لَا يُمْسِكَنَّ أَحَدُكُمْ ذَكَرَهُ بِيَمِينِهِ وَهُوَ يَبُولُ، وَلَا يَتَمَسَّحْ مِنَ الْخَلَاءِ بِيَمِينِهِ‘‘)

तुम में से कोई भी पेशाब करते हुए अपना आला ए तनासुल दाएं हाथ से ना पकड़े, और ना ही दाएं हाथ से इस्तिंजा करे, (सहीह मुस्लिम)

 मज़कूरा बाला इबारतों से यह ज़ाहिर है की जो मज़हब बगैर धोए हाथ को मुंह में डालने से मना करता हो दाएं हाथ से क़ज़ा ए हाजत की इजाज़त ना देता हो, हत्ता की बैतुल खुला में ठुकने को मना करता हो क्या वह मज़हब हमें इस बात की इजाज़त देगा कि हम अपने मुंह में गलाज़त लें ? नहीं हरगिज़ नहीं क्योंकि मुंह को अल्लाह तआला ने सिर्फ खाने के लिए नहीं बनाया है बल्कि तिलावते क़ुरआन के लिए भी बनाया है,

 हज़रत समुरा बिन जुनदब रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 

(’’طيِّبُوا أفواهَكُم بالسواكِ، فإِنَّها طُرُقُ القرآنِ‘‘ )

 यानी अपने मुंहों को मिस्वाक से साफ रखो, बे शक यह क़ुरआन के रास्ते हैं,

 हज़रते मौला अली रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने मिस्वाक का हुक्म देते हुए रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का यह फरमाने ग्रामी बयान किया कि जब कोई बंदा मिस्वाक कर के नमाज़ पढ़ने के लिए खड़ा होता है तो एक फरिश्ता उसके पीछे क़ुरआन सुनने के लिए खड़ा हो जाता है, क़ुरआने पाक की मोहब्बत उस फरिश्ते को मुसलसल नमाज़ी के क़रीब लाती रहती है, हत्ता कि वह अपना मुंह उस के मुंह पर रख देता है, फिर नमाज़ी के मुंह से कुरआन ए करीम का जो भी लफ्ज़ निकलता है, वह फरिश्ते के पेट में चला जाता है,
 लिहाज़ा तुम अपने मुंह साफ रखा करो,(किताबुज़्जुहद)


 नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया 

(’ إذا قام أحدكم إلى الصلاة فليغسل يديه من الغمر فإنه ليس شيء أشد على الملك من ريح الغمر، ما قام عبد إلى الصلاة قط إلا التقم فاه ملك، ولا يخرج من فيه آية إلا تدخل في في الملك. "الديلمي عن عبد الله بن جعفر‘‘)

 जब तुम में से कोई शख्स नमाज़ के लिए खड़ा हो तो वह अपने हाथों से चिकनाई को धो दे, बेशक फरिश्तों को (गोश्त वगैरह की) चिकनाई से ज़्यादा कोई चीज़ बदबूदार महसूस नहीं होती, बंदा जब भी नमाज़ के लिए खड़ा होता है फरिश्ता मुंह खोल लेता है और कोई आयत वगैरा आदमी के मुंह से निकलती है तो वह फरिश्ते के मुंह में दाखिल हो जाती है, (कंज़ुल उम्माल)

 मज़कूरा बाला इबारत को बार-बार पढ़ें और गौर से पढ़ें कि क्या हम दुरुस्त कर रहे हैं ? क्या हमारा यह फेल शरअ के मुवाफिक़ है ? आया अगर हम ऐसा करते रहें तो क्या फरिश्ता हमारे मुंह के क़रीब आएगा ? क्या हमारी तिलावत को फरिश्ता अपने मुंह में दाखिल करेगा ? नहीं हरगिज़ नहीं तो खुदारा अपनी इस फेले क़बीह से बाज़ आएं और दुनिया व आखिरत को बर्बाद ना करें,

[ 4 ] मनी, या मज़ी लुआब के साथ हलक़ से उतरना,

 ओरल सेक्स करने में बाज़ औक़ात मनी खारिज हो जाता है और लुआब के साथ हलक़ से उतर जाता है जब कि मनी अइम्मा ए अहनाफ के नज़दीक नापाक है, जैसा कि हिदाया में है 

(والمنی نجس یجب غسلہ)

 मनी नजिस है और उसका धोना वाजिब है, (हदाया बाबुल अन्नजास)

 और शरह वक़ाया में है

(’’وعن المنی بغسلہ سواء کان رطبا اویابساً‘‘)

 और मनी धोने से पाक होती है ख्वाह खुश्क हो या तर, (शरह वक़ाया बाबु अन्नजास)

 फतावा हिंदिया में है 

(’کل مایخرج من بدن الانسان ممایوجب خروجہ الوضوء اولغسل فھومغلظ کالغائط والبول والمنی والمذی والودی‘‘)

 जो चीज़ें आदमी के बदन से ऐसी निकलती हैं जिन के निकलने से वज़ू या गुस्ल वाजिब हो जाता है वह मुगल्लज़ हैं, जैसे पाखाना, और पेशाब, और मनी, और मज़ी, और वदी,( बाबुन्निजासत )

     बहारे शरीअत में है  इंसान के बदन से जो ऐसी चीज़ निकले कि उस से गुस्ल या वज़ू वाजिब हो नजासते गलीज़ा है, जैसे पाखाना, पेशाब, बहता खून, पीप, भर मुंह क़ै, हैज़ व निफास व इस्तहाज़ा का खून,मनी, मज़ी, वदी, (बहारे शरीअत हिस्सा २ नजासतों का बयान)

         मज़कूरा बाला तमाम इबारतों से ओरल सेक्स की हुरमत निखर कर सामने आ जाती है, क्यों कि मनी,मज़ी, मर्द की हो या औरत की नापाक है, और बसा औक़ात मनी, खारिज हो कर हलक़ से उतर जाती है जो ज़न गालिब है और अगर बिल फर्ज़ खारिज ना हो जब भी जायज़ नहीं, क्योंकि बहालते शहवत मर्द के ज़क्र से भी और औरत की फर्ज यानी शर्मगाह से रतूबत निकलती है जो मज़ी कहलाती है जब की वह नजिस भी है और हराम भी,

     अगर कोई मर्द अपनी बीवी की शर्मगाह चूसता या चाटता या उसे मुह में लगाता है तो उसका मुंह इस नजासत से नहीं बच सकता, इसी तरह अगर कोई औरत अपने शौहर के ज़क्र (आला ए तनासुल) को मुंह में दाखिल करे और चूसे तो वह भी गलब ए शहवत के बिना पर निकलने वाली मर्द की मज़ी से से नहीं बच सकती बल्कि वह मज़ी उन के मुंह में दाखिल हो कर लुआब के साथ शामिल हो जाती है और बसा औक़ात लुआब निगलने की सुरत में मअदा तक भी जा पहुंचती है, और यह निहायत ही घटिया और रज़ील हरकत है, जबकि शरीअत ए इस्लामिया नजिस और खबीस को हराम क़रार देकर उसे खाने पीने से मना करती, और घटिया आदतों से बचने का हुक्म करती है, निजासत से दूर रहने का हुक्म देती है, और सुथराई को पसंद करती है, इरशाद ए बारी तआला है 

(’’اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ التَّوَّابِیْنَ وَ یُحِبُّ الْمُتَطَهِّرِیْنَ‘‘)

 बेशक अल्लाह पसंद रखता है बहुत तौबा करने वालों को और पसंद रखता है सुथरों को, (कंज़ुल ईमान, सूरह बक़रा २२२५)

 रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का फरमान है 

(ان اللہ کریم یحب الکرم ومعالی الاخلاق ویبغض سفسافھا)

 यक़ीनन अल्लाह तआला बाइज़्ज़त है और इज़्ज़त और अखलाक़े आलिया को पसंद फरमाता है और घटिया आदतों को नापसंद फरमाता है, (अलमुस्तादरक लिलहाकिम)

 नीज़ फरमाता है 

(’’اَلْخَبِیْثٰتُ لِلْخَبِیْثِیْنَ وَ الْخَبِیْثُوْنَ لِلْخَبِیْثٰتِ ۚ وَ الطَّیِّبٰتُ لِلطَّیِّبِیْنَ وَ الطَّیِّبُوْنَ لِلطَّیِّبٰتِ)

 गंदियां गंदों के लिए और गंदे गंदियों के लिए और सुथरियों सुथरों के लिए और सुथरे सुथरियों के लिए, (कंज़ुल ईमान, सूरह नूर आयत २६)

 आयते करीमा को पढ़ें और बार-बार पढ़ें और सोचें कि आप गंदे हैं या सुथरे हैं ? अगर सुथरे हैं और सुथरों को पसंद फरमाते हैं तो खुदारा ओरल सेक्स से बाज़ रहे और भी तरीक़े हैं सेक्स बढ़ाने के लिए ना कि फेल नाजायज़ के ज़रिआ,

     क्योंकि ओरल सेक्स के ज़रिए बहुत से नुक़सानात हैं मसलन अक्सर मनी खारिज हो कर हलक़ से उतर गई दो उस के अंदर मलीन की तादाद में स्पर्म होते हैं जो कि एक क़िस्म के बैक्टीरिया हैं जो मुंह में जाने के बाद निज़ामे हाजमा व ज़ाएक़ा को बिल्कुल से मफक़ूद कर देते हैं और उसके अंदर (Human papillomavirus / एक क़िस्म की वायरस का नाम है) अक्सर पाया जाता है जो कि कैंसर का बाअस है रिसर्च में यह बात सामने आई है कि जो ओरल सेक्स करता है उसके मुंह में ना खत्म होने वाला खतरनाक छाले पड़ जाते हैं और बसा औक़ात उन में पीप भी भर जाता है जो कि जान लेवा भी हो सकते हैं,

     लिहाज़ा इस फेले क़बीह से दूर रहें और अगर किसी ने जाने-अंजाने में ऐसा कोई अमल कर लिया है तो वह सिदक़ दिल से तौबा करे और अल्लाह से माफी मांगे तो उम्मीद है कि हक़ तआला माफ फरमा देगा, इरशाद ए रब्बानी है 

(’’وَ  الَّذِیْنَ  اِذَا  فَعَلُوْا  فَاحِشَةً  اَوْ  ظَلَمُوْۤا  اَنْفُسَهُمْ  ذَكَرُوا  اللّٰهَ  فَاسْتَغْفَرُوْا  لِذُنُوْبِهِمْ۫-وَ  مَنْ  یَّغْفِرُ  الذُّنُوْبَ  اِلَّا  اللّٰهُ    وَ  لَمْ  یُصِرُّوْا  عَلٰى  مَا  فَعَلُوْا  وَ  هُمْ  یَعْلَمُوْنَ(۱۳۵)اُولٰٓىٕكَ  جَزَآؤُهُمْ  مَّغْفِرَةٌ  مِّنْ  رَّبِّهِمْ  وَ  جَنّٰتٌ  تَجْرِیْ  مِنْ  تَحْتِهَا  الْاَنْهٰرُ  خٰلِدِیْنَ  فِیْهَا وَ  نِعْمَ  اَجْرُ  الْعٰمِلِیْن‘‘ )

     और वह कि जब कोई  बे हयाई या अपनी जानों पर ज़ुल्म करें अल्लाह को याद कर के अपने गुनाहों की माफी चाहे और गुनाह कौन बख्शे सिवा ए अल्लाह के और अपने किए पर जान बूझ कर अड ना जाएं, ऐसों का बदला उन के रब की बख्शीश और जन्नतें हैं जिन के नीचे नहरें रवां हमेशा उन में रहें और कामियों (नेक लोगों) का क्या अच्छा नेग (इनआम, हिस्सा)  है, (कंज़ुल ईमान, सूरह आले इमरान आयत नंबर १३६)

 नीज़ फरमाता है 

(’’ اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا وَ اَصْلَحُوْا وَ بَیَّنُوْا فَاُولٰٓىٕكَ اَتُوْبُ عَلَیْهِمْ وَ اَنَا التَّوَّابُ الرَّحِیْمُ‘‘)

 मगर वह जो तौबा करें और संवारें और ज़ाहिर कर दें तो मैं उनकी तौबा कुबूल फरमाउंगा और मैं ही हूं बड़ा तौबा कुबूल फरमाने वाला मेहरबान, (कंज़ुल ईमान, सूरह बकडरा आयत १४०)

 और सूरह आले इमरान में है 

(’’اِلَّا الَّذِیْنَ تَابُوْا مِنْۢ بَعْدِ ذٰلِكَ وَ اَصْلَحُوْا فَاِنَّ اللّٰهَ غَفُوْرٌ رَّحِیْمٌ‘‘)

 मगर जिन्होंने उस के बाद तौबा की और आपा संभाला तो ज़रूर अल्लाह बख्शने वाला मेहरबान है, (कंज़ुल ईमान, सूरह आले इमरान आयत १३६)

واللہ تعالیٰ اعلم بالصواب

 अज़ क़लम 

 फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी उतरौलवी

३ जनवरी २०२२ बरोज़ सोमवार



 हिंदी ट्रांसलेट 

 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 

३ जनवरी २०२२ बरोज़ सोमवार





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