(जहांगीर का लक़ब)

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(जहांगीर का लक़ब)

हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ रज़ि अल्लाहू अन्ह अपने पीरो मुर्शिद की खान्क़ाह में तक़रीबन साढ़े 6 साल तक मुक़ीम रहे और तमाम उलूम ज़ाहिरी व बातिनी रियाज़तो मुजाहिदात में मशगूल रहे लेकिन अभी तक खान्क़ाह से आपको कोई खिताब आता नहीं हुआ था, आपके पीरो मुर्शिद इस सिलसिला में अक्सर गौर फरमाते रहे, आखिर शअबानुल मुअज़्ज़म की 15 वीं शब में आपको इस बात का इल्क़ा हुआ कि सैय्यद मखदूम अशरफ को जहांगीर के खिताब से सरफराज़ किया जाए।

    चुनांचे नमाज़े फजर के लिए जब आप हुजरे से बाहर तशरीफ लाए और नमाज़ जमाअत से अदा करने के बाद फारिग हुए तो तमाम हाज़िरीन ने आपको खिताबे जहांगीर अता होने पर मुबारकबाद पेश की हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रज़ि अल्लाहु अन्ह ने पंडवा शरीफ का सफर तीन या चार बार किया कुल क़यामे मुद्दत तक़रीबन 12 साल है।


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