(बैअत व खिलाफत)

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(बैअत व खिलाफत)

मुअर्रखीन का बयान है कि मुझे नहीं मालूम की किसी पीर ने अपने होने वाले मुरीद का या उस्ताद ने अपने होने वाले शागिर्द का इस्तक़बाल किया हो, और अगर यह खुश गवार वाक़िआ कहीं वुजूद में आया भी है, तो इस अंदाज़ का नहीं जिस तरीक़े और फर्त शोक़ व इंसबात से हाजी शाह अलाउल हक़ गंज नबात पंडवी रहमतुल्लाहि अलैह ने अपने होने वाले मुरीद सैय्यद मखदूम अशरफ का इस्तक़बाल किया है।

गौसुल आलम क़ुदुस्सरह की हयाते मुक़द्दसा के तअल्लुक़ से मुतअद्दिद सिरत की किताबों में तहरीर है कि जूं जूं पंडवा शरीफ की आबादी क़रीब आती रही आपकी आतिशे इश्तियाक़ तेज़ से तेज़ होती रही, और दूसरी तरफ आपके होने वाले पीरो मुर्शिद की आतिशे इंतज़ार भड़कती रही और इज़्तराब व बेक़रारी में इजाफा होता रहा।

मिरातुल इसरार में है कि जब हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ सिमनान से पंडवा के लिए रवाना हुए तो मंज़िल तक पहुंचने में जो वक़्त गुज़रा इस दरमियान 70 मर्तबा अबूल अब्बास हज़रत खिज़्र अलैहिस्सलाम ने हज़रत शैख अलाउल हक़ गंज नबात को यह खबर दी कि सिमनान से एक शहबाज़ परवाज़ कर चुका है और वक़्त के तमाम बड़े-बड़े मशाइखे किराम उस पर अपना जाल डालने के लिए इंतज़ार में हैं, लेकिन उसको मैं बड़ी हिफाज़त से आपकी बारगाह में ला रहा हूं जिस की तअलीम व तरबियत और हिफाज़त आप का फर्ज़ होगा।

अभी हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ का क़ाफिला क़रीब दो कोस दूर था और आपके पीरो मुर्शीद अपने अहबाब और शागिर्दों के हमराह इस्तक़बाल के लिए आबादी से काफी दूर तशरीफ ले गए, और सम्ते मगरिब से उठने हुए गुब्बर की चादर चाक हुई तो देखा कि एक नूरानी क़ाफिला चला आ रहा है और जब तालिब व मतलूब ने एक दूसरे का मुशाहिदा किया तो हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ ने सर नियाज़ पीर के क़दमे नाज़ पर रख दिया।

मुर्शीद जलील ने इंतिहाई शफक़त से उस सर को अपनी आगोशे तरबियत में रख लिया और इरशाद फरमाया इस महाफा (डोली) में सवार हो जाओ, आपने अर्ज़ किया यह कैसे मुमकिन है कि मैं आपके नक़्शे क़दम को बोसा देता हुवा ना चल कर सवारी में चलूं ? और पीरो मुर्शीद पैदल।

शैख अलाउल हक़ ने मुसकुराते हुए इरशाद फरमाया यह सियादत की रिफअत व मंज़िल की शनाख्त होगी आपने बरजस्ता अर्ज़ किया कि अज़मते पीर ज़िंदगी का नसबुल ऐन होना चाहिए पीर ने दोबारा हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ की पेशानी को बोसा दिया।

और आपको सवारी में बैठा दिया (महाफा वही था तो शैख अलाउल हक़ गंज नबात को अपने पीरो मुर्शीद शैख अखी सेराज क़ुदुस सरह से मिला था) खान्क़ाहे मुअल्ला के क़रीब पहुंचे तो हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ सवारी से कूद पड़े और मुर्शिद के नक़्शे क़दम पर चलते हुए हाज़िर हुए शैख अलाउल हक़ क़ुदुस सरा ने तमाम क़िस्म के खानों से शिकम सैर किया बअदहू एक पान अपने हाथ से खिलाया फिर उस सरकार में बैअत का जो तरीक़ा राएज था बैअत की, हाज़िरीन ने मुबारकबाद पेश की फिर अपने पीरो मुर्शिद शैख अखी सेराज क़ुदुस सरा की अता किया और खान्वादा ए चिश्तिया के औराद वज़ाईफ अज़कार अशगाल की तअलीम अता की उस वक़्त हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ की उम्र 25 या 27 साल थी कि सिमनान से पंडवा तक 2 साल लगा था।


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