(मीलदे मुस्तफा 09)

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(मीलदे मुस्तफा 09)

मरहबा या मुस्तफ़ा के बारह हुरूफ़ की निस्बत से जश्ने विलादत के 12 मदनी फूल

 ( 2 ) काबतुल्लाह शरीफ़ के नक्शे ( MODLE ) में कहीं कहीं गुड़ियों का तवाफ़ दिखाया जाता है, येह गुनाह है। ज़मानए जाहिलिय्यत में काबतुल्लाह शरीफ़ में तीन सो साठ बुत रखे हुए थे, हमारे प्यारे आका ﷺ ने फ़त्हे मक्का के बा'द का बतुल मुशर्रफ़ा को बुतों से पाक फ़रमा दिया। लिहाज़ा नक्शे में भी बुत ( गुड़ियां ) नहीं होने चाहिएं, इस की जगह प्लास्टिक के फूल रखे जा सकते हैं। ( तवाफ़े का'बा के की तस्वीर जिस में चेहरे वाजेह नज़र नहीं आते उस को मस्जिद या घर वगैरा में लगाना जाइज़ है, हां जिस तस्वीर को ज़मीन पर रख कर खड़े खड़े देखने से चेहरा वाजेह नज़र आए उस का आवेज़ां करना ना जाइज़ व गुनाह है।

( 3 ) ऐसे "बाब" ( GATE ) लगाना जाइज़ नहीं जिन में मोर वगैरा बने हुए हों। जानदारों की तसावीर की मज़म्मत में दो अहादसे मुबारका पढ़िये और ख़ौफ़े खुदा वन्दी से लरज़िये : ( 1 ) ( रहमत के ) फ़िरिश्ते उस घर में दाखिल नहीं होते जिस घर में कुत्ता या तस्वीर हो।  ( 2 ) जो कोई ( जानदार की ) तस्वीर बनाएगा अल्लाह तआला उस को उस वक्त तक अज़ाब देता रहेगा जब तक उस तस्वीर में रूह न फूंक दे और वोह उस में कभी भी रूह न फूंक सकेगा। 

( 4 )जश्ने विलादत की खुशी में बा'ज़ जगह गाने बाजे बजाए जाते हैं ऐसा करना शरअन गुनाह है। इस सिल्सिले में दो रिवायात पेशे खिदमत हैं : ( 1 ) सरकारे मदीना ﷺ ने फ़रमाया : मुझे ढोल और बांसरी तोड़ने का हुक्म दिया गया है। ( 2 ) हज़रते सय्यदुना जहाक रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है : गाना दिल को ख़राब और रब तबा-र-क व तआला को नाराज़ करने वाला है। (सुब्हे बहारा सफह 22)

( 1 ) जश्ने विलादत की खुशी में मस्जिदों, घरों, दुकानों और सुवारियों पर नीज़ अपने महल्ले में भी सब्ज़ सब्ज़ परचम लहराइये, ख़ूब चरागां कीजिये, अपने घर पर कम अज़ कम बारह बल्ब तो ज़रूर रोशन कीजिये। रबीउन्नूर शरीफ़ की बारहवीं रात हुसूले सवाब की निय्यत से इज्तिमाए ज़िक्रो नात में शिर्कत कीजिये और सुब्हे सादिक के वक्त सब्ज़ सब्ज़ परचम उठाए दुरूदो सलाम पढ़ते हुए अश्कबार आंखों के साथ सुब्हे बहारां का इस्तिक़बाल कीजिये। 

 12 रबीउन्नूर शरीफ़ के दिन हो सके तो रोज़ा रख लीजिये कि हमारे प्यारे आका मक्की मदनी मुस्तफा ﷺ पीर शरीफ़ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाते थे। जैसा कि हज़रते सय्यिदुना अबू कतादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं : बारगाहे रिसालत ﷺ में पीर के रोज़े के बारे में दरयाफ्त किया गया तो इर्शाद फ़रमाया : इसी दिन मेरी विलादत हुई और इसी रोज़ मुझ पर वहय नाज़िल हुई। शारेहे सहीह बुख़ारी हज़रते सय्यिदुना इमाम कस्तुलानी रहमतुल्लाह तआला अलैह फ़रमाते हैं : और विलादते बा सआदत के अय्याम में महफ़िले मीलाद करने के खुवास से येह अम्र मुजर्रब ( या'नी तजरिबा शुदा ) है कि इस साल अम्नो अमान रहता है और हर मुराद पाने में जल्दी आने वाली खुश खबरी होती है। अल्लाह उस शख़्स पर रहमत नाज़िल फ़रमाए जिस ने माहे विलादत की रातों को ईद बना लिया। (सुब्हे बहारा सफह 21)


मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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