(मीलदे मुस्तफा 10)

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(मीलदे मुस्तफा 10)

रबीउल अव्वल कैसे गुज़ारें..?

नबिय्ये पाक ﷺ की महब्बत ईमान की बुन्याद है और महब्बत की एक अलामत येह है कि महबूब का कसरत से जिक्र किया जाए। रिवायत में है :- 

"مَنْ اَحَبَّ شَیْئََااَکْشَرَمِنْ ذِکْرِہٖ"

या'नी जो किसी से महब्बत करता है उस का कसरत से ज़िक्र करता है। यूं तो सारा साल ही हमें नबिय्ये पाक ﷺ का ज़िक्रे खैर करना और अपने कौलो फेल के जरीए आप ﷺ से महब्बत का इज़हार करना चाहिये लेकिन बिल खुसूस रबीउल अव्वल में अल्लाह करीम की इस अज़ीम ने मत के शुक्राने के तौर पर ज़िक्रे हबीब की कसरत करनी चाहिये और इस ज़िक्र के कई तरीके हैं मसलन नबिय्ये पाक ﷺ पर दुरूदे पाक पढ़ना ,ना'त शरीफ़ पढ़ना , आप ﷺ की शानो अजमत बयान करना ,( महल्ले दारों ,राह चलने वालों वगैरा और हुकूके आम्मा का ख़याल रखते हुए शरीअत के मुताबिक़ ) महफ़िले मीलाद करना और इस में शरीक होना वगैरा ज़िक्रे रसूल हैं ,लिहाज़ा रबीउल अव्वल में येह तमाम चीजें हमारे मा'मूलात में शामिल होनी चाहिएं।

 जश्ने विलादत की खुशी में मस्जिदों ,घरों ,दुकानों और सुवारियों पर नीज़ अपने महल्ले में भी सब्ज़ सब्ज़ परचम लहराइये ,खूब चरागां कीजिये अपने घर पर कम अज़ कम बारह बल्ब तो ज़रूर रोशन कीजिये।

 जश्ने विलादत की खुशी में बा'ज़ जगह गाने बाजे बजाए जाते हैं ऐसा करना शअन गुनाह है।

ना'ते पाक बेशक चलाइये मगर धीमी आवाज़ में और इस एहतियात के साथ कि किसी इबादत करने वाले ,सोते हुए या मरीज़ वगैरा को तक्लीफ़ न हो नीज़ अज़ान व अवकाते नमाज़ की भी रिआयत कीजिये। (औरत की आवाज़ में ना'त की केसिट मत चलाइये)

 गली या सड़क वगैरा पर इस तरह सजावट करना ,परचम गाड़ना जिस से रास्ता चलने और गाड़ी चलाने वाले मुसल्मानों को तक्लीफ़ हो ,ना जाइज़ है। 

 चरागां देखने के लिये औरतों का अजनबी मर्दो में बे पर्दा निकलना हराम व शर्मनाक नीज़ बा पर्दा औरतों का भी मुरव्वजा अन्दाज़ में मर्दो में इख़्तिलात ( या'नी खल्त मल्त होना ) इन्तिहाई अफ़सोस नाक है।

 अपने रब से हम गुनहगारों को बख़्शवाने वाले प्यारे प्यारे आका ﷺ पीर शरीफ़ को रोज़ा रख कर अपना यौमे विलादत मनाते रहे। आप भी यादे मुस्तफ़ा ﷺ में 12 रबीउल अव्वल शरीफ़ को रोज़ा रख लीजिये।

 ग्यारह की शाम को वरना बारहवीं शरीफ़ की रात को गुस्ल कीजिये। हो सके तो इस ईदों की ईद की ता'ज़ीम की निय्यत से ज़रूरत की तमाम चीजें नई खरीद लीजिये।(वसाइले बख्शिश,सफह 465)

जश्ने विलादत की खुशी में कोई भी ऐसा काम मत कीजिये जिस से हुकूकुल इबाद जाएअ हो।

 तमाम इस्लामी भाई और इस्लामी बहनें जश्ने विलादत की खुशी में सुन्नतों के मुताबिक़ ज़िन्दगी गुज़ारने की निय्यत कर लीजिये।

 जश्ने विलावत की खुशी में लाइटिंग कीजिये लेकिन बिजली फ़राहम करने वाले इदारे से राबिता कर के जाइज़ ज़राएअ से लाइटिंग कीजिये।

 जुलूस में हत्तल इम्कान बा वुजू रहिये और नमाजे बा जमाअत की पाबन्दी का ख़याल रखिये। 

जुलूस में "तक्सीमे रसाइल" कीजिये या'नी मक्तबतुल मदीना की कुतुबो रसाइल नीज़ मुखलिफ़ मेमोरी कार्ड्स वगैरा खूब तक़सीम कीजिये। 

 खाने की चीजें फल वगैरा तक्सीम करने में फेंकने के बजाए लोगों के हाथों में दीजिये ,ज़मीन पर गिरने बिखरने और क़दमों तले कुचलने से इन की बे हुर्मती होती है। इश्तिआल अंगेज़ नारेबाज़ी पुर वकार जुलूसे मीलाद को मुन्तशिर कर सकती है ,पुर अम्न रहने में आप की अपनी भलाई है। (वसाइले बख्शिश,सफह 465)

बारह वफ़ात न कहें।

     प्यारे प्यारे सुन्नी भाइयों तमाम अहले सुन्नत वल जमाअत बारह रबिउल अव्वल शरीफ़ को यौमें विलादत सरकार ﷺ के मौके पर ईदे मीलादुन्नबी ﷺ मनाते हैं। हालांकि 12 रबिउन्नूर शरीफ को सरकारे दो आलम ﷺ ने इस दुनियाये फ़ानी से जाहिरी परदा भी फरमाया है। मगर हम अहले सुन्नत वल जमाअत का अकीदा है कि हमारे सरकार ﷺ हाज़िर व नाजिर हैं और अब भी हयात हैं। बारह वफ़ात वह कहें और मनायें जिनकी नजर में मआज अल्लाह सरकार ﷺ मर गये हैं। और वैसे भी बारह वफ़ात के लुखी मायने बारह मौतें हैं। यह लफ्ज अजमते मुस्तफा में तौहीन आमेज लफ्ज है। लेहाजा बारह वफ़ात हरगिज हरगिज न कहें , ईदे मीलादुन्नबी ﷺ कहें। या 12 वी शरीफ कहें।( सब्हे शबे वीलादत सफह 23)

जश्ने विलादत मनाने की नियतें बुख़ारी शरीफ़ की सब से पहली हदीसे मुबारक है : या'नी आमाल का दारो मदार निय्यतों पर है। 

     याद रखिये ! हर नेक अमल में सवाबे आख़िरत की निय्यत होना ज़रूरी है वरना सवाब नहीं मिलेगा। जश्ने विलादत मनाने में भी सवाब कमाने की निय्यत ज़रूरी है। सवाब की निय्यत के लिये अमल का शरीअत के मुताबिक और ज़ेवरे इख़्लास से मुजय्यन होना शर्त है। अगर किसी ने दिखावे और वाह वाह करवाने की खातिर जश्ने विलादत मनाया, इस के लिये बिजली की चोरी की, बिलजब्र चन्दा वुसूल किया, बिला इजाज़ते शरई मुसल्मानों को ईज़ा दी और हुकूके आम्मा तलफ़ किये, मरीज़ों, सोने वालों और शीर ख़्वार ( या'नी दूध पीते ) बच्चों को तक्लीफ़ होने का इल्म होने के बा वुजूद ऊंची आवाज़ से लाउड स्पीकर चलाया तो अब सवाब की निय्यत बेकार है बल्कि गुनहगार है। जिस क़दर अच्छी अच्छी निय्यतें ज़ियादा होंगी उसी क़दर सवाब भी ज़ियादा मिलेगा।(सुब्हे बहारा सफह 32)

मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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