(जल्वए आला हज़रत 14)
➲ सबबे तालीफ़ : फिर कुछ दिनों के बाद शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत के हुक्म व ईमा के मुताबिक जाते वाजिबुल - वजूद पर वसूक व तवक्कल करते हुए इस अजीम काम का आगजा कर दिया कि इस अंजाम व इस्तिताम तक पहुँचाने वाला सिर्फ और सिर्फ वही खालिक व मालिक है मैं इब्तिदा इंतिहा में उसी रहमत व बरकात का उम्मीदवार व मुतलाशी हूँ। मैं कदम आगे बढ़ाता रहा मंजिल खुद बखुद सिमटती चली गई और यके बाद दीगर निशाने राह की तलाश जारी रही मेरी जुस्तान और मेरा कारवाने शौक बढ़ता चला गया इधर शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत मद्दा जिल्लहुल - आलो के पैहम इसरार व तकाजे होते रहे जिसके नतीजे में आज अहले सुन्नत की मेज़ पर इस अजीम सौगात व अरमुगाने खुलूस को पेश करते हुए मैं जेहनी फख्न व इंबिसात और दिली फरहत व शादमानी महसूस कर रहा हूँ।
➲ अगर यह काविश बारगाहे रब्बुल - इज़्जत व बारगाहे रिसालत में मक्बूल हो जाए तो मेरी उम्मीदों और आरजुओं की इंतिहा हो जाएगी और इस किताब के जरिए अगर एक शख्स भी राहे हिदायत व सिराते मुस्तकीम पर गामज़न व आमिल हो गया तो यह मेरे लिए सुर्ख ऊँट से बेहतर और दारैन की सआदत व फीरोज़ बख़्ती होगी और उसे सरमाय - ए - आखिरत समझने में हक बजानिब हूँगा।
(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-54)
मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)