विलादते बा सआदत
हुज़ूरे अक्दस ﷺ की तारीखे पैदाइश में इख़्तिलाफ़ है। मगर क़ौले मशहूर येही है कि वाकिअए "असहाबे फ़ील" से पचपन दिन के बाद 12 रबीउल अव्वल ब मुताबिक 20 एप्रिल सि. 571 ई. विलादते बा सआदत की तारीख है अहले मक्का का भी इसी पर अमल दर आमद है कि वोह लोग बारहवीं रबीउल अव्वल ही को काशानए नुबुव्वत की जियारत के लिये जाते हैं और वहां मीलाद शरीफ़ की महफ़िलें मुन्अकिद करते हैं।
तारीख़े आलम में येह वोह निराला और अजमत वाला दिन है कि इसी रोज़ आलमे हस्ती के ईजाद का बाइष, गर्दिशे लैलो नहार का मतलूब, खल्के आदम का रम्ज, किश्तिये नूहु की हिफाज़त का राज, बानिये काबा की दुआ, इब्ने मरयम की बिशारत का जुहूर हुवा, काएनाते वुजूद के उलझे हुए गेसुओं को सवारने वाला, तमाम जहान के बिगड़े निज़ामों को सुधारने वाला यानी मुहम्मद ﷺ आलमे वुजूद में रौनक़ अफ़रोज़ हुए और पाकीज़ा बदन, नाफ़ बरीदा, खतना किये हुए खुशबू में बसे हुए ब हालते सजदा, मक्कए मुकर्रमा की मुक़द्दस सर ज़मीन में अपने वालिदे माजिद के मकान के अंदर पैदा हुए, बाप कहाँ थे जो बुलाए जाते और अपने नौ निहाल को देख कर निहाल होते, वोह तो पहले ही वफात पा चुके थे दादा बुलाए गए जो उस वक़्त तवाफे काबा में मशगूल थे, ये खुश खबरी सुन कर दादा "अब्दुल मुत्तलिब" खुश खुश हरमे काबा से अपने घर आए और वालिहाना जोशे महब्बत में अपने पोते को कलेजे से लगा लिया फिर का'बे में ले जा कर खैरो बरकत की दुआ मांगी और “मुहम्मद" नाम रखा।
आप ﷺ के चचा अबू लहब की लौंडी “षुवैबा" खुशी में दौड़ती हुई गई और “अबू लहब" को भतीजा पैदा होने की खुश खबरी दी तो उस ने इस खुशी में शहादत की उंगली के इशारे से "षुवैबा" को आज़ाद कर दिया जिस का षमरा अबू लहब को येह मिला कि उस की मौत के बाद उस के घर वालों ने उस को ख़्वाब में देखा और हाल पूछा, तो उस ने अपनी उंगली उठा कर यह कहा कि तुम लोगों से जुदा होने के बाद मुझे कुछ (खाने पीने) को नहीं मिला बजुज़ इस के कि "षुवैबा" को आज़ाद करने के सबब से इस उंगली के जरीए कुछ पानी पिला दिया जाता हूं।
इस मौक़अ पर हज़रते शैख अब्दुल हक़ मुहूद्दिष देहलवी ने एक बहुत ही फ़िक्र अंगेज़ और बसीरत अफरोज बात तहरीर फ़रमाई है जो अहले महब्बत के लिये निहायत ही लज्ज़त बख़्श है, वोह लिखते हैं कि इस जगह मीलाद करने वालों के लिये एक सनद है कि येह आं हज़रत ﷺ की शबे विलादत में खुशी मनाते हैं और अपना माल खर्च करते हैं मतलब यह है कि जब अबू लहब को जो काफ़िर था और उस की मज़म्मत में कुरआन नाजिल हुवा, आं हज़रत ﷺ की विलादत पर खुशी मनाने, और बांदी का दूध खर्च करने पर जज़ा दी गई तो उस मुसलमान का क्या हाल होगा जो आं हज़रत ﷺ की महब्बत में सरशार हो कर खुशी मनाता है और अपना माल खर्च करता है।
(क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 72