(हज़रत सईद बिन ज़ैद)
(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)
आप ख़ानदाने कुरैश में से हैं। और ज़माने जाहिलियत के मश्हूर मोवहहिद (एक ख़ुदा को मानने वाला) ज़ैद बिन अम्र बिन नफील के बेटे और अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म के बहनोई हैं। यह जब मुसलमान हुए उन को हज़रत उमर ने रस्सी से बांध कर मारा और उन के घर में जाकर उन को और अपनी बहन फातिमा बिन्ते ख़त्ताब को भी मारा मगर यह दोनों इस्तक़ामत का पहाड़ बन कर इस्लाम पर जमे रहे। जंगे बद्र में उन को और हज़रत तलहा को हुज़ूरे अकरम ने अबू सुफ्यान के काफ़िला का पता लगाने के लिए भेज दिया था। इस लिए जंगे बद्र के लड़ाई में हिस्सा न ले सके। मगर उस के बाद की तमाम लड़ाइयों में यह डट कर कुफ़्फ़ार से हमेशा जंग करते रहे। गन्दुमी रंग बहुत ही लम्बा क़द, ख़ूबसूरत और बहादुर जवान थे। तक़रीबन 50 हिजरी में सत्तर बरस की उम्र पाकर मक़ामे "अतीक्" में विसाल फरमाया और लोगों ने आप के जनाज़ा मुबारका को मदीना मुनव्वरा लाकर आप को जन्नतुल बक़ीअ में दफ़न किया। (अकमाल फ़ी अस्माइर्रिजाल स 596 व बुख़ारी जि1, स 545 मा हाशिया)
कुवां क़ब्र बन गई
एक औरत जिस का नाम अरवी बिन्ते अवैस था। उन के ऊपर हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम की कचहरी में यह दावा दायर कर दिया कि उन्हों ने मेरी एक ज़मीन ले ली है। मरवान ने जब उन से जवाब तलब किया तो आप ने फरमाया कि मैं ने जब रसूलुल्लाह को यह फ़रमाते हुए सुना है कि जो शख़्स किसी की बालिश्त बराबर भी ज़मीन ले लेगा तो कक़्यामत के दिन उस को सातों ज़मीनों का तौक पहनाया जाए गा तो इस हदीस को सुन लेने के बाद भला यह क्यों कर मुमकिन है कि मैं किसी की ज़मीन ले लूँगा। आप का यह जवाब सुन कर मरवान ने कहा! ऐ औरत ! अब मैं तुझ से कोई गवाह तलब नहीं करूँगा। जा तू उस ज़मीन को ले ले। हज़रत सईद बिन ज़ैद ने यह फैसला सुन कर यह दुआ मांगी। ऐ अल्लाह! अगर यह औरत झूठी है तो अंधी हो जाए और उसी ज़मीन पर मरे। चुनान्चे उस के बाद यह औरत अंधी हो गई। मुहम्मद बिन अम्र का बयान है कि मैं ने उस औरत को देखा है कि वह अंधी हो गई थी और दीवारें पकड़ कर इधर उधर चलती फिरती थी। यहाँ तक कि वह एक दिन उसी ज़मीन के एक कुवें में गिर कर मर गई और किसी ने उस को निकाला भी नहीं। इस लिए वही कुवाँ उस की क़ब्र बन गई और एक अल्लाह वाले की दुआ की मक़बूलियत का जलवा नज़र आ गया।(मिश्कात जिल्द नं० 2, सफा नं० 546 व हुज्जतुल्लाह जिल्द नं० 2, सफा नं० 866 बहवाला बुख़ारी व मुस्लिम)
तबसेरा
अल्लाह वालों की यह करामत है कि उन की दुआएं बहुत ज़्यादा और बहुत जल्द मकबूल हुआ करती हैं। और उन की ज़बान से निकले अलफाज़ का नतीजा ख़ुदा वन्दे करीम ज़रूर आलमे वजूद में लाता है। सच है।
जो जज़ब के आलम में निकले लबे मोमिन से
वह बात हक़ीक़त में तक़दीरे इलाही है
(करामाते सहाबा हिंदी पेज 99/100)
पेश करदा
मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही
ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद
नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या