(हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़)

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(हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़)

(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)

   हुजूरे अक़दस की विलादते मुबारका से दस साल बाद खानदाने कुरैश में आप पैदा हुए। शुरूआती तअलीम व तरबियत इसी तरह हुई जिस तरह सरदाराने कुरैश के बच्चों की हुआ करती थी। उन के इस्लाम लाने का सबब यह हुआ कि यमन के एक बुढ़े ईसाई पादरी ने उन को नबी आखिरूज़्ज़माँ के ज़हूर की ख़बर दी और यह बताया कि वह मक्का में पैदा होंगे और मदीना मुनव्वरा को हिजरत करेंगे। जब यह यमन से लौट कर मक्का मुकर्रमा आए तो अबू बकर सिद्दीक़ ने उन को इस्लाम लाने को कहा। चुनान्चे एक दिन उन्हों ने बारगाहे रिसालत में हाज़िर होकर इस्लाम क़बूल कर लिया। जब कि आप से पहले थोड़े ही आदमी इस्लाम लाए थे। चूंकि मुसलमान होते ही आप के घर वालों ने आप पर ज़ुल्म व सितम का पहाड़ तोड़ना शुरू कर दिया। इस लिए हिजरत करके हबशा चले गए। फिर हबशा से मक्का मुकर्रमा वापस आए और अपना सारा माल व सामान छोड़ कर बिल्कुल ख़ाली हाथ हिजरत करके मदीना मुनव्वरा चले गए। मदीना मुनव्वरा पहुँच कर आप ने बाज़ार का रूख़ किया। चन्द ही दिनों में आप की तिजारत में इस क़दर ख़ैरो बरकत हुई कि आप का शुमार दौलत मन्दों में होने लगा और आप ने क़बीलए अन्सार की एक ख़ातून से शादी भी कर ली।

तमाम इस्लामी लड़ाइयों में आप ने जान व माल के साथ शिरकत की। जंगे उहुद में यह ऐसी जाँ बाज़ी और सर फरोशी के साथ लड़े कि उन के बदन पर इक्कईस (21) ज़ख्म लगे थे और उन के पैरों में भी एक गहरा ज़ख्म लग गया था। जिस की वजह से लंगड़ा कर चलते थे। आप की सख़ावत का यह आलम था कि एक मर्तबा आप का तिजारती काफ़िला जो सात सौ (700) ऊँटों पर मुश्तमिल था। आप ने अपना यह पूरा काफिला ऊँटों और उन पर लदे हुए सामानों के साथ ख़ुदा की राह में ख़ैरात कर दिया।(करामाते सहाबा हिंदी पेज 86/87)

 एक मर्तबा हुज़ूरे अकरम ने अपने सहाबा को सदक़ा देने की तरग़ीब दी। तो आप ने चार हज़ार दिरहम पेश कर दिए। दूसरी मर्तबा चालीस हज़ार दिरहम और तीसरी मर्तबा पाँच सौ घोड़े आर पाँच सौ ऊँट पेश कर दिए। ब वक़्ते वफ़ात एक हज़ार घोड़े और पच्चास हज़ार दीनारों का सदक़ा किया और जंगे बद्र में शरीक होने वाले सहाबा-ए-किराम के लिए चार चार सौ दीनार की वसियत फ़रमाई और उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा सिद्दीक़ा और दूसरी अज़वाजे मुतहहरात के लिए एक बाग़ की वसियत की जो चालीस हज़ार दिरहम की मालियत का था। (मिश्कात ज़ि 2, स 567)

32 हिजरी में कुछ दिनों बीमार रह कर बहत्तर (72) साल की उम्र में विसाल फ़रमाया और मदीना मुनव्वरा के क़ब्रस्तान जन्नतुल बकीअ में दफ़न हुए और हमेशा के लिए सख़ावत व बहादुरी का यह सूरज डुब गया।(अश्रए मुबश्शेरा स 229 ता 235 व अकमाल स 603 व कन्ज़ुल उम्माल ज़ि 15 स 204)

 यूँ तो आप की मुक़द्दस ज़िन्दगी पुरी करामत ही करामत थी मगर हज़रत उस्मान ग़नी की ख़िलाफत का मस्ला आप ने जिस तरह तैय फ़रमाया वह आप की बातिनी फरासत (समझ) और ख़ुदा दाद करामत का एक बड़ा ही अनमोल नमूना है।

जन्नत में जाने वाला पहला मालदार

हुज़ूरे अकरम ने फरमाया मेरी उम्मत के मालदारों में सब से पहले अब्दुर्रहमान बिन औफ़ जन्नत में दाख़िल होंगे। (कन्ज़ुल अमाल जिल्द 12, सफा 293)

माँ के पेट ही से नेक
 हज़रत इब्राहीम बिन अब्दुर्रहमान का बयान है कि हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ एक मर्तबा बेहोश होगए और कुछ देर बाद जब वह होश में आए तो फ़रमाया कि अभी अभी मेरे पास दो बहुत ही ख़ौफफ़नाक फ़रिश्ते आए और मुझ से कहा कि उस ख़ुदा के दरबार में चलो जो प्यारा व अमीन है। इतने में एक दूसरा फ़रिश्ता आगया और उस ने कहा कि उन को छोड़ दो। यह तो जब अपनी माँ के पेट में थे उसी वक़्त से नेक बख़्ती आगे बढ़ कर उन से मिल चुकी है। (कन्ज़ुल अमाल जि 15, स 203, मतबूआ हैदराबाद)

हज़रत उस्मान की खिलाफत

अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ने वफ़ात के वक़्त छः जन्नती सहाबा हज़रत उस्मान, हज़रत अली, हज़रत सअद बिन अबी वक़ास, हज़रत जुबैर बिन अव्वाम हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ और हज़रत तलहा बिन उबैदुल्लाह का नाम लेकर यह वसियत फरमाई कि मेरे बाद इन छः शख्सों में से जिस पर इत्तेफ़ाक़ हो जाए उस को ख़लीफा मुक़र्रर किया जाए और तीन दिन के अन्दर ख़िलाफत का मस्ला ज़रूर तैय कर दिया जाए और इन तीन दिनों तक हज़रत सुहैब मस्जिदे नबवी में इमामत करते रहेंगे। इस वसियत के मुताबिक यह छः हज़रात एक मकान में जमा हो कर दो दिन तक राय करते रहे। मगर यह मजलिसे शूरा किसी नतीजा पर न पहुँची। तीसरे दिन हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ ने फ़रमाया कि तुम लोग जानते हो कि आज ख़लीफा मुक़र्रर करने का तीसरा दिन है। इस लिए तुम लोग आज अपने में से किसी को ख़लीफा चुन लो। हाज़िरीन ने कहा कि ऐ अब्दुर्रहमान ! हम लोग तो इस मस्ला को हल नहीं कर सकते। अगर आप के ज़हन में कोई राय हो तो पेश कीजीए। आप ने फरमाया कि छः आदमियों की यह जमाअत क़ुरबानी से काम ले और तीन आदमियों के हक़ में अपने अपने हक़ को छोड़ दे। यह सुन कर हज़रत जुबैर ने ऐलान फ़रमाया कि मैं हज़रत अली के हक में अपने हक से हट जाता हूँ। फ़िर हज़रत तलहा हज़रत उस्मान के हक़ में अपने हक को छोड़ दिया। आख़िर में हज़रत सअद ने फ़रमाया कि मैं ने हज़रत अब्दुर्रहमान को अपना हक़ दे दिया। अब हज़रत अब्दुर्रहमान ने फरमाया कि ऐ उस्मान व अली! में तुम दोनों को यक़ीन दिलाता हूँ कि मैं हरगिज़ हरगिज़ ख़लीफा नहीं बनूँगा। अब तुम दो ही उम्मीदवार रह गए हो। इस लिए तुम दोनों ख़लीफा के चुनाव का हक़ मुझे दे दो। हज़रत उस्मान व हज़रत अली ने ख़लीफा का चुनावी मस्ला ख़ुशी ख़ुशी हज़रत अब्दुर्रहमान के सुपुर्द कर दिया। इस बात चीत के मुकम्मल हो जाने के बाद हज़रत अब्दुर्रहमान मकान से बाहर निकल आए और पुरे शहरे मदीना में छुपके छुपके चक्कर लगा करके उन दोनों उमीदवारों के बारे में आम लोगों की राय मालूम करते रहे। फ़िर दोनों उम्मीदवारों से अलग अलग तन्हाई में यह वादा ले लिया कि अगर मैं तुम को ख़लीफा बना दूँ तो तुम इन्साफ़ करोगे। और अगर दूसरे को ख़लीफा मुक़र्रर कर दूँ तो तुम उस की फरमां बरदारी करोगे। जब दोनों उम्मीदवारों से यह वादा ले लिया तो फिर आप ने मस्जिदे नबवी में आकर यह ऐलान फ़रमाया कि ऐ लोगो! मैं ने ख़िलाफत के मआमले में ख़ुद भी काफ़ी ग़ौर व खोज़ किया और इस मामले में अन्सार व मुहाजिरीन की आम राय भी मालूम कर ली है चूँकि राए आम्मा हज़रत उस्मान के हक़ में ज़्यादा है इस लिए मैं हज़रत उस्मान को ख़लीफा चुनता हूँ। यह कह कर सब से पहले ख़ुद आप ने हज़रत उस्मान की बैअत की और आप के बाद हज़रत अली और दूसरे सब सहाबा-ए-किराम ने बेअत कर ली। इस तरह ख़िलाफत का मस्ला बेग़ैर किसी इख़्तिलाफ़ व बिखराव के तैय होगया। जो बिला शुव्हा हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ़ की बहुत बड़ी करामत है। (अशरए मुबश्शेरा स 231, ता 234 व बुख़ारी जिल्द नं०-1, सफा नं०- 524 मुनाक़िबे उस्मान)

पेश करदा
मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही
ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद
 नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या


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