(हज़रत सअद बिन अबी वक़ास 01)
(आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं)
उन की कुन्नियत अबू इस्हाक़ है और ख़ानदाने कुरैश के एक बहुत ही नामवर शख़्स हैं जो मक्का मुकर्रमा के रहने वाले हैं। यह उन खुश नसीबों में से एक हैं जिन को नबी अकरम ने जन्नत की ख़ुशख़बरी दी। यह शुरू इस्लाम ही में जब कि अभी उन की उम्र 17 बरस की थी। दामने इस्लाम में आ गए और हुज़ूर नबी अकरम के साथ साथ तमाम लड़ाईयों में हाज़िर रहे। यह ख़ुद फ़रमाया करते थे कि मैं वह पहला शख़्स हूँ जिस ने अल्लाह तआला की राह में कुफ़्फ़ार पर तीर चलाया। और हम लोगों ने हुज़ूर के साथ रह कर इस हाल में जिहाद किया कि हम लोगों के पास सिवाए बबूल के पत्तों और बबूल की फल्लियों के कोई खाने की चीज़ न थी।(मिश्कात जि 2, स 567)
हुज़ूरे अक़्दस ने ख़ास तौर पर उन के लिए यह दुआ फ़रमाई। ऐ अल्लाह उन के तीर के निशाने को दुरूस्त फ़रमा दे और उन की दुआ को क़बूल फ़रमा
ख़िलाफते राशिदा के ज़माने में भी यह फारस और रूम के जिहादों में कमान्डर रहे। अमीरूल मोमिनीन हज़रत उमर ने अपने दौरे ख़िलाफत में उन को कूफ़ा का गवर्नर मुक़र्रर फ़रमाया। फिर उस उहदा से हटा दिया। और यह बराबर जिहादों में कुफ़्फ़ार से कभी सिपाही बन कर और कभी इस्लामी लश्कर के कमान्डर बन कर लड़ते रहे। जब उस्मान ग़नी अमीरूल मोमिनीन हुए तो उन्हों ने दोबारा उन को कूफ़ा का गवर्नर बना दिया। यह मदीना मुनव्वरा के क़रीब मक़ामे "अतीक्" में अपना एक घर बना कर उस में रहते थे। और 55 हिजरी में जब कि उन की उम्र शरीफ पचहत्तर (75) बरस की थी उसी मकान के अन्दर विसाल फ़रमाया। आप ने वफ़ात से पहले यह वसियत फ़रमाई थी कि मेरा ऊन का वह पुराना जुब्बा ज़रूर पहनाया जाए जिस को पहन कर मैं ने जंगे बद्र में कुफ़्फ़ार से जिहाद किया था। चुनान्चे वह जुब्बा आप के कफ़न में शामिल किया गया। लोग पुरी अक़ीदत से आप के जनाज़े को कंधों पर उठा कर मक़ामे "अतीक्" से मदीना मुनव्वरा लाए और हाकिमे मदीना मरवान बिन हकम ने आप की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाई और जन्नतुल बकीअ में आप की क़ब्र मुनव्वर बनाई।
"अशरए मुबश्शेरा" यअनी जन्नत की ख़ुश ख़बरी पाने वाले दस सहाबियों में से यही सब से आखिर में दुनिया से तशरीफ ले गए और उन के बाद दुनिया अशरए मुबश्शेरा के ज़ाहिरी वजूद से ख़ाली हो गई। मगर ज़माना उन की बरकात से हमेशा हमेशा फैज़ पाता रहेगा।(अकमाल फ़ी असमाइर्रिजाल व तज़किरतुल हुफ्फाज़ जिल्द नं०1, सफा नं०-22 वगैरा)
बद नसीब बूढ़ा
हज़रत जाबिर से रिवायत है कि कूफ़ा के कुछ लोग हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की शिकायात लेकर अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म के दरबारे ख़िलाफ़त में मदीना मुनव्वरा में पहुँचे हज़रत अमीरूल मोमिनीन ने उन शिकायात की तहक़ीक़ात के लिए चन्द भरोसेमन्द सहाबियों को हज़रत सअद बिन अबी वक़ास के पास कूफ़ा भेजा और यह हुक्म फ़रमाया कि कूफ़ा शहर की हर मस्जिद के नमाज़ियों से नमाज़ के बाद यह पूछा जाए कि हज़रत सअद बिन अबी वक़ास कैसे आदमी हैं? चुनान्चे तहक़ीक़ात करने वालों की इस जमाअत ने जिन जिन मस्जिदों में नमाज़ियों को क़सम दे कर हज़रत सअद बिन अबी वक़ास के बारे में दरयाफ़्त किया तो तमाम मस्जिदों के नमाज़ियों ने उन के बारे में अच्छा कहा और तअरीफ की। मगर एक मस्जिद में सिर्फ एक आदमी जिस का नाम "अबू सअदा" था। उस ने हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की तीन शिकायात पेश कीं और कहा ये माले ग़नीमत बराबरी के साथ तक़सीम नहीं करते और खुद लश्करों के साथ जिहाद में नहीं जाते और मुक़द्दमात के फैसलों में इन्साफ़ नहीं करते) यह सुन कर हज़रत सअद बिन अबी वकास ने फौरन ही यह दुआ मांगी! ऐ अल्लाह! अगर यह शख़्स झूठा है तो उस की उम्र लम्बी कर दे और उस की ग़रीबी को बढ़ा दे। उस को फितनों में मुब्तला करदे। अब्दुल मलिक बिन उमेर ताबई का बयान है कि इस दुआ का मैंने यह असर देखा कि "अबू सअदा" इस क़दर बूढ़ा हो चुका था कि बूढ़ापे की वजह से उस की दोनों भवें उस की दोनों आँखों पर लटक पड़ी थीं और वह दर बदर भीक मांग मांग कर बहुत फ़क़ीरी और मुहताजी की ज़िन्दगी बसर करता था। और इस बुढ़ापे में भी वह राह चलती हुई जवान लड़कियों को छेड़ता था। और उन के बदन में चुटकियाँ भरता रहता था और जब कोई उस से उस का हाल पुछता था तो वह कहा करता था कि मैं क्या बताऊँ? मैं एक बूढ़ा हूँ जो फितनों में मुब्तेला हूँ क्योंकि मुझ को हज़रत सअद बिन अबी वक़ास की बद दुआ लग गई है। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द-2, सफा-863 बहवाला बुख़ारी व मुस्लिम व बेहक़ी)
दुश्मने सहाबा का अनजान
एक शख्स हज़रत सअद बिन अबी वकास के सामने सहाबा-ए-किराम की शान में गुस्ताख़ी व बे अदबी के अलफाज़ बकने लगा। आप ने फ़रमाया कि तुम अपनी इस ख़बीस हरकत से बाज़ रहो वरना मैं तुम्हारे लिए बद दुआ कर दूँगा। इस गुस्ताख़ व बे बाक ने कह दिया कि मुझे आप की बद दुआ की कोई परवा नहीं। आप की बद दुआ से मेरा कुछ भी नहीं बिगड़ सकता। यह सुन कर आप को जलाल आगया और आप ने उसी वक़्त यह दुआ मांगी कि या अल्लाह! अगर इस शख़्स ने तेरे प्यारे नबी के प्यारे सहाबियों की तौहीन की है तो आज ही उस को अपने कहरो ग़ज़ब की निशानी देखा दे ताकि दूसरों को उस से सबक़ हासिल हो। इस दुआ के बाद जैसे ही वह शख़्स मस्जिद से बाहर निकला तो बिल्कुल ही अचानक एक पागल ऊँट कहीं से दोड़ता हुआ आया और उस को दाँतों से पछाड़ दिया और उस के ऊपर बैठ कर उस को इस क़दर ज़ोर से दबाया कि उस की पिसलियों की हड्डियाँ चूर चूर हो गईं और वह फौरन ही मर गया। यह मंज़र देख कर लोग दौड़ दौड़ कर हज़रत सअद को मुबारक बाद देने लगे कि आप की दुआ मक़बूल हो गई और सहाबा का दुश्मन हलाक हो गया। (दलाइलुन्नबुवा जि 3, स 207, व हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जि 2, स 866)
चेहरा पीठ की तरफ़ हो गया
एक औरत की यह बुरी आदत थी कि वह हमेशा हज़रत सअद बिन अबी वक़ास के मकान में झांक झांक कर आप के घरेलू हालात की ताक झांक किया करती थी। आप ने बार बार उस को समझाया और मना किया। मगर वह किसी तरह रूकी नहीं। यहाँ तक कि एक दिन निहायत जलाल में आप की ज़बाने मुबारक से यह अलफाज़ निकल पड़े कि "तेरा चेहरा बिगड़ जाए" इन अलफाज़ों का यह असर हुआ कि उस औरत की गर्दन घुम गई और उस का चेहरा पीठ की तरफ हो गया। (हुज्जतुल्लाह अलल आलमीन जिल्द 2, सफा 866, बहवाला इब्ने असाकिर)
पेश करदा
मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही
ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद
नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या