(फ़ासिक़े मुअलिन को सलाम करना कैसा है?)
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातहूसवाल :- फ़ासिक़े मुअलिन को सलाम करना कैसा है ?
किताब व सुन्नत के मुताबिक़ जवाब इनायत फरमाएं।
साइल:- मुहम्मद शाहिद रज़ा नूरी
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
जवाब :- इस सूरत में बगैर शरई मजबूरी के फ़ासिक़े मुअलिन को सलाम करना मकरूहे तहरीमी है, ना जाइज व गुनाह है क्योंकि इसमें फ़ासिक़ की ताज़ीम है और फ़ासिक़ की ताज़ीम करना गुनाह है बल्कि शरअन (शरीअत में) उसकी तौहीन वाजिब है। इमाम अब्दुल्लाह ख़तीब तबरेज़ी ने इस हदीस शरीफ़ को नक़ल किया है,
(عن أنس قال قال رسول الله صلى الله عليه وسلم إذا مدح الفاسق غضب الرب تعالى واهتز له العرش)
तर्जमा:- हज़रत अनस रज़ी अल्लाहु तआला अनह कहते हैं कि रसूल अल्लाह ﷺ ने फ़रमाया जब फ़ासिक़ की मदहो तारीफ़ की जाती है तो अल्लाह पाक मदहो तारीफ़ करने वाले पर गुस्सा होता है और उसकी वजह से अर्श (आसमानों के ऊपर एक जगह) कांप उठता है।(मिश्कातुल मसाबीह पार्ट 4 हदीस नo 4859 मक्तबतुल बुशरा कराची)
अल्लामा इब्न आबिदीन शामी फरमाते हैं,(یکرہ السلام علی فاسق لو معلنا والا لا ، ولا علی الفاسق المعلن)अगर वह फ़ासिक़े मुअलिन है तो उसको सलाम करना मकरूहे (तहरीमी) है वरना नहीं, फ़ासिक़े मुअलिन को सलाम न करे। (रद्दूल मुहतार पार्ट 2 पेज़ नo 452 दारुल मार्फ़ा लेबनान)
मुफ़्ती आज़म हिन्द अलैहिर्रहमा फ़रमाते हैं, मुअलिन फ़ासिक़ जो किसी कबीरा (बड़ा गुनाह) का मुर्तकिब (मुजरिम) या सगीरा (छोटा गुनाह) पर मुस्सिर (अड़ जाना) हो उससे पहले सलाम न किया जाए, मगर जबकि उससे ज़रर (नुक़सान,तकलीफ) का अंदेशा हो।(फ़तावा मुस्तफ़विया पेज़ नo 451 रज़ा एकेडमी बरेली शरीफ)वल्लाहु तआला आलम व रसूलहू आलम
लेखक
मुहम्मद अयाज़ हुसैन तस्लीमी (बरेली शरीफ)
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन मिस्बाही (गोड्डा झारखण्ड)
दिनांक - 14 अगस्त 2025
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