(नमाज़ मे एक सजदा किया तो नमाज़ हुई ?)
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
किया फरमाते हैं उलमाए दीन इस मसअला में कि इमाम साहब से नमाज़ से स्हव (भूल) हुआ दो सजदह के बजाए एक सजदह किया तो ऐसी सूरत में नमाज़ होगी या नहीं ?
साइल:- फजरुद्दीन फैज़ानी नागौर शरीफ
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
अल'जवाब बिऔनिल मलिकिल वह्हाब
सुरते मसऊला में अगर साइल (सवाल पूछने वाला) की मुराद स्हव होने के बाद एक सजदह करने से नमाज़ का सजदह है तो उसके लिए हुक्म यह है कि उसकी नमाज़ फ़ासिद (बेकार) हो गई क्योंकि नमाज़ के दोनों सजदे फ़र्ज हैं एक का भी तर्क (छोड़ना) मुफ़्सिदे नमाज़ (नमाज़ न होना) है,
और अगर स्हव हो जाने के बाद एक सजदह करने से मुराद सजदह स्हव का सजदह है तो फिर इस सूरत में हुक्म यह है कि नमाज़ मकरूहे तहरीमी वाजिबुल एआदा (नमाज़ दोबारा पढ़ना) हुई, वजह यह है कि नमाज़ में वाक़ेय होने से जो नुक़सान वाक़ेय होता है उस नुक़सान की तालाफ़ी (भरपाई) के लिए शरीअत ने दो सजदे करने का हुक्म फरमाया है, लिहाज़ा इस नुक़सान की वजह से नमाज़ में जो कमी पैदा हुई है वह एक सजदह से पूरी नहीं हो सकती, लिहाज़ा उस पर दोनों सजदे करना वाजिब थे।
बहारे शरीअत में है ।"हर रकअत में दो बार सजदह फ़र्ज़ है"(पार्ट 1 चैप्टर 3 पेज़ नo 513 दावते इस्लामी)
इमाम हसन बिन अम्मार शरनबुलाली फरमाते हैं
لانہ صلی اللہ علیہ وسلم سجد سجدتین وھو جالس بعد التسلیم وعمل بہ الاکابر والصحابۃ و التابعین
(मराक़िल फ़लाह पेज़ नo 460)
तर्जमा: नबी करीम ﷺ ने भूल की वजह से बैठे हुए सलाम फेरने के बाद सजदह स्हव के दो सजदे किये और इसी पर बड़े बड़े सहाबा और ताबियीन रज़ी अल्लाहु तआला अनहुम अजमईन का अमल है।
लेखक
मुहम्मद अयाज़ हुसैन तस्लीमी (बरेली शरीफ यू पी)
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन मिस्बाही (गोड्डा झारखण्ड)
दिनांक - 11 जुलाई 2025
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