(क़याम पर क़ादिर ना हो तो बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है ? )

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 (क़याम पर क़ादिर ना हो तो बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है ? )

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि  बरकातूह 
कया फरमाते हैं उलमाए दिन व मुफ्तीयाने शरअ मतीन इस मसअले में की जो शख्स क़याम पर क़ादिर ना हो लेकीन रुकू, सुजूद अदा ना कर सकता हो क्या वह बैठकर नमाज़ पढ़ सकता है ?निज़ यह बताएं की कुर्सी पर बैठ कर नमाज़ पढ़ने का क्या तरीक़ा है ? 

साइल : अब्दुर्रज़्ज़ाक़ अशरफी दाहूद गुजरात
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातूह

जवाब : जो शख्स क़याम पर क़ादिर हो मगर रुकू व सुजूद पर क़ादिर ना हो या क़याम व रुकू दोनों पर  क़ुदरत रखता हो लेकिन ज़मीन या ज़मीन पर रखी हुई बारह उंगूल ऊंची सख्त चीज़ पर सजदा अदा ना कर सकता हो तो ऐसा शख्स मअज़ूर है और ऐसे मअज़ूर से क़याम असलन साक़ीत हो जाता है अब उसे एख्तियार है चाहे तो खड़ा हो कर इशारे से नमाज़ पढ़े या ज़मीन पर बैठ कर दोनों सूरते जायज़ है, अल बत्ता ज़मीन पर बैठ कर नमाज़ पढ़ना अफज़ल है इस सूरत मे जिस तरह मुमकिन हो बैठे दो ज़ानो या पांव  फैला कर जिस मे आसानी हो उस तरह बैठ कर इशारे से पढ़े!

फतावा आलमगिरी मे इमामे अहले सुन्नत हज़रत अलामा  मुफ़्ती सैयद मुहम्मद निज़ामुदिन  शेराज़ी सिंधी और फोक़्हा ए  किराम अलैहिर्रहमा की एक जमाअत ने तहरीर फरमाया हैं

"وان عجز عن القیام والرکوع والسجود وقدر علی القعود یصلی قاعدا بایماء ویجعل السجود اخفض من الرکوع"

तर्जुमा :और अगर क़याम रुकू सुजूद से आजीज़ हो और बैठने पर क़ादिर हो (तो इस सूरत में) इशारे से बैठ कर नमाज़ पढ़े और सजदे को रुकू से ज़्यादा पस्त करें। (फतवा आलमगीरी जिल्द 2 सफा 136)

"(وان تعذرا)لیس تعذرھما شرطا بل تعذر السجود کاف لا القیام  (أومأ قاعدا) وھو أفضل من الایماء قائماً لقربہ من الارض (و یجعل سجودہ أخفض من  رکوعہ )لزوماً (والا) یخفض(لا)یصح لعدم الایماء"

तर्जुमा : अगर क़याम करना व सजदा अदा करना मुश्किल हो जाए, (लेकिन) दोनों का मुतअज़ूर होना शर्त नहीं है बल्कि सजदों का मुतअज़ूर होना ही (इशारे से नमाज़ पढ़ने के लिए) काफी है ना कि क़याम का, तो बैठ कर इशारे से नमाज़ पढ़ने और इस सूरत में खड़े होने के बजाए बैठ कर नमाज़ पढ़ना अफज़ल है क्योंकि बैठने में ज़मीन से ज़्यादा क़रीब होगा और सजदों में रुकू की बनिस्बत ज़्यादा झुकना लाज़िम है और अगर सजदो में ज़्यादा ना झुका तो इशारा ना पाए जाने की वजह से नमाज़ नहीं होगी।(दुर्रे मुख्तार मअ रद्दुल मुहतार जिल्द 2 सफा 684,685)

बहारे शरीअत में है : बैठ कर पढ़ने में किसी खास तौर पर बैठना शर्त नहीं मरीज़ पर जिस तरह आसानी हो उस तरह बैठे, हां दो ज़ानों बैठना आसान हो या दूसरी तरह बैठने के बराबर हो तो दो ज़ानों बेहतर है वरना जो  आसान  हो एख्तियार करें, इशारे की सूरत में सजदा का इशारा रुकू से पस्त होना ज़रूरी है, मगर यह ज़रूरी नहीं कि सर को ज़मीन से बिल्कुल क़रीब कर दे!(बहारे शरीअत जिल्द 1 सफा 722)

मज़कूरा बाला फिक़्ही जुज़इया की रौशनी में मालूम हुवा की जो शख्स क़याम पर क़ादिर हो लेकिन रुकू सुजूद पर क़ुदरत ना रखता हो या किसी और वजह से सजदा अदा ना कर सकता  हो तो ऐसे शख्स को ज़मीन पर बैठ कर इशारे से नमाज़ पढ़ने की शरई तौर पर इजाज़त है,

जिसे इशारे से पढ़ने की इजाज़त है उसके लिए कुर्सी पर बैठ कर भी नमाज़ पढ़ना जायज़ है लेकिन चियोंकि इस में पांव लटका कर बैठना होता है इसलिए हत्तल इमकान कुर्सी या  इस्टूल पर नमाज़ पढ़ने से एहतराज़ करना चाहिए, और सुन्नते मुबारिका के मुताबिक़ अरकाने नमाज़ अदबो एहतराम के साथ अदा करने की कोशिश करनी चाहिए, हां अगर जिसे ज़मीन पर बैठ कर नमाज़ पढ़ने में ना क़ाबिल बर्दाश्त तकलीफ हो तो वह मजबूरन कुर्सी या  इस्टूल या तख्त वगैरा पर पांव लटका कर नमाज़ अदा कर सकता है और उसका तरीक़ा यह है कि हस्बे मअमूल नियत कर के तकबीरे तहरीमा कह कर ज़ेरे  नाफ हाथ बांध ले जिस तरह हालते क़याम में हाथ बाधे जाते हैं और रुकू, सुजूद इशारे से अदा करें रुकू के इशारे में सर को झुकाए और सजदे के इशारे में सर को रुकू से ज़रा ज़्यादा झुकाएं अगर सर को रुकू से ज़्यादा ना झुकाया तो नमाज़ ना होगी, और इस बात का भी खयाल रहे की रुकू सुजूद के इशारों में अपने सर को झुकाएं ना की पीठ को और कुर्सी पर बैठने की हालत में बिला वजह टेक लगाने से एहतराज़ करें। अगर्चे पीठ झुकाने या टेक से भी नमाज़ अदा हो जाएगी लेकिन ऐसा करना बेहतर नहीं।

सजदा से मअज़ूर शख्स जमाअत से कुर्सी पर बैठ कर नमाज़ पढ़ने की सूरत में क़याम  ना करे बल्कि मुकम्मल बैठ कर ही नमाज़ पढ़े क्यों कि अगर क़याम करता है तो इस सूरत में दो खराबी लाज़िम आएगी (1) सफ की सिधी में कुर्सी होने की वजह से वह हालते क़याम  में सफ से आगे जुदा हो कर खड़ा होगा (2) अगर कुर्सी सफ से पीछे करके सफ की सिध में खड़ा होगा तो बैठने की हालत में सफ से अलग होगा और इस सूरत में पिछली सफ में भी खल्ल वाक़िअ होगा अगर्चे  मज़कूरा सूरतों में भी उस की भी नमाज़ हो जाएगी लेकिन सफ बराबर ना होने और मुक़तदी का आगे पीछे होने की वजह से इंक़तअ सफ  लाज़िम आएगा और इंक़तअ सफ अज़ रुए हदीस शरीफ ना  जायज़ हैं जैसा की हदीस शरीफ में है जिस ने सफ क़तअ की उसे अल्लाह तआला (अपनी रहमत से) क़तअ कर दे।(सुनने अबू दाऊद)

मुसंद अहमद में है("من وصل صفا، وصله اللہ تبارك وتعالى، ومن قطع صفا قطعه اللہ تبارك وتعالى")जिसने सफ को मिलाया अल्लाह तबारक व तआला उस को मिलाएगा और जिसने सब को क़तअ किया अल्लाह तबारक व तआला उसको क़तअ फरमाएगा। (मुसंद अहमद जिल्द 10 सफा 19)

लिहाज़ा रुकू सुजूद से मअज़ूर शख्स मुकम्मल बैठ कर ही नमाज़ अदा करे या कुर्सी के बगैर खड़ा होकर पढ़े इस सूरत में क़याम करने और फिर बैठ जाने में सफ बंदी में खल्ल  वाक़िअ ना होगा और जो लोग मअमूली परेशानी या क़ाबिले बर्दाश्त तकलीफ के सबब कुर्सी पर बैठ कर इशारे से नमाज़ पढ़ते हैं उनकी नमाज ना होगी।वल्लाहु तआला व रसूलुहुल आला आलमु बिस्सवाब अज़्ज़ व जल व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

अज़ क़लम 
सैय्यद मुहम्मद नज़ीरुल हाशमी सहरवरदी
 शाही दारुल क़ज़ा व आस्तान ए आलिया गौसिया सहरवरदिया दाहोद शरीफ अल हिंद
01 ज़िल क़अदा 1446 हिजरी मुताबिक़ 30 अप्रैल 2025 ब रोज़ बुध
हिंदी अनुवादक 
 मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
21 माहे सफर 1447 हिजरी मुताबिक़ 16 अगस्त 2025 ब रोज़ शनिवार
मिन जानिब
 मसाइले शरइय्या ग्रुप
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