(अलाऊल हक़ पंडवी रहमतुल्लाहि अलैह का विसाल)
हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाहि अलैह के पीरो मुर्शिद अल हाज शाह अलाऊल गंज नबात पंडवी रहमतुल्लाहि अलैह का विसाल 800 हिजरी में हुवा।
गौसुल आलम इन दिनों हिंदुस्तान के शुमाली मगरिब में मुक़ीम थे आप के दिल में एक अजीब सी कैफियत तारी हुई मुरीदीन और दूसरे अहबाब व रुफ्क़ा इस कैफियत को समझने से कासिर थे, दिल नासबूर की कैफियत ज़्यादा देर छुप ना सकी और लोगों पर इसका इंकशाफ हो ही गया कि गौसुल आलम के पीरो मुर्शिद इस दुनिया ए फानी में नहीं रहे आप ने फौरन पंडवा शरीफ जाने का क़सद फरमाया एक क़ाफिला आपके साथ पंडवा जाने के लिए रवाना हुवा।
पंडवा शरीफ में उस वक़्त अकाबिरीन रोज़गार और ओहदा साज़ शख्सियत मौजूद थीं, पंडवा शरीफ में यह आपका आखरी सफर था।
आपने अपने दस्ते मुबारक से मखदूम ज़ादे हज़रत मुहम्मद नूर क़ुतुब आलम के सर पर सज्जादा नाशिनी की दस्तार बांधी और आलिया किराम की खान्क़हों के अंदाज़े पुर रस्म सज्जादगी अदा की गई, उस वक़्त औलिया व असफिया के हुजूम में इस बात पर हुज्जत चल रही थी कि क़ुतुबे बंगाल किस को मुंतखब किया जाए।
हज़रत सैयद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी क़ुदुस्सरा ने इरशाद फरमाया कि क़ुतुबे बंगाल मेरे मखदूम ज़ादे मुहम्मद नूर क़ुतुब आलम हैं, हाज़िरीन में कुछ तो खामोश रहे और कुछ लोगों ने इसका सुबूत तलब किया आपने मखदूम ज़ादे से फरमाया सामने वाली पहाड़ी को हुक्म दो की वह यहां आ जाए और उसकी तरफ शहादत की उंगली से इशारा फरमाया हज़रत की खादिमे खास बाबा हुसैन उस वक़्त वहां मौजूद थे बयान फरमाते हैं कि जैसे यह अल्फाज़ आपकी ज़बाने मुबारक से निकले पहाड़ी हरकत में आ गई, हज़रत ने फरमाया अभी ठहर जा मैं मखदूम ज़ादे से बातें कर रहा हूं, उसके बाद मखदूम ज़ादे (मुहम्मद नूर क़ुतुब आलम) ने उंगली से इशारा किया और हुक्म दिया कि पहाड़ी आ जा फौरन पहाड़ी हरकत में आ गई हाज़िरीन ने अपनी आंखों से इसका मुशाहिदा किया और क़ुतुब आलम इत्तेफाक़ से क़ुतुबे बंगाल के लक़ब से मशहूर हो गए।