(ज़ाहिरी ज़िंदगी का आखिरी दिन)
क़ुदूतुल कुबरा गौसुल आलम अमीर व कबीर तारिकुस सल्तनत महबूबे यज़दानी हुज़ूर सुल्तान सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी ने ज़िंदगी के आखिरी अय्याम में जब माहे मुहर्रम का चांद दिखा तो बहुत खुश हुए, (जबकि उस से पहले मुहर्रमुल हराम के चांद को देखते तो आंखों से आंसू जारी हो जाते) हज़रत नुरुल ऐन ने आप की इस गैर मअमूली खुशी का सबब दरियाफ्त किया तो इरशाद हुवा इसी माहे मुबारक में मेरे जद्दे करीम हज़रत इमाम अाली मक़ाम ने अपने अहले खाना व रुफ्क़ा का के हमराह कर्बला के सर ज़मीन पर जामे शहादत नोश किया था, मेरी भी यही ख्वाहिश है कि माहे मुहर्रम में रफीक़े आला से विसाल हो तो बहुत बेहतर है।
चुनांचे ऐसा ही हुवा आप मुहर्रमुल हराम के पहले अशरा में अलील (बीमार) हो गए और आप ज़्यादा तर खामोश रहने लगे कोई शख्स शरई मसाइल पर कोई बात करता या मसअला दरियाफ्त करता तो आप उसे जवाब दे देते लेकिन काफी देर बाद आप इरशाद फरमाते की मैं इस वक़्त एक अहम काम में मशगूल हूं।
शबे आशूरा में आपकी तबीअत ज़्यादा खराब हो गई और जब यह खबर मशहूर हुई की आप बीमार हैं तो मुरीदीन मुअतकिदीन जौक़ दर जौक़ बारगाहे ईलाही में मिज़ाज पुरसी के लिए चारों तरफ से हाज़िर होने लगे।
इसी दरमियान हज़रत शेख नजमुद्दीन और मखदूम ज़ादे मुहम्मद नूर क़ुतुब आलम पंडवी भी हाज़िर हुए, आपने गौसुल आलम की सेहतो तंदुरुस्ती की दुआ फरमाई तो आपने इरशाद फरमाया कि सेहतो सलामती मखदूम ज़ादे को मेयस्सर हो अब मेरे और महबूब के दरमियान के हिजाबात खत्म हो रहे हैं, और अब वह वक़्त आ गया है कि दोस्त दोस्त की बारगाह में हाज़िर हो कर शरबते जमाल से अपनी तिशना कामी दूर करे दूसरे अशरा में आप पर नक़ाहत का जबरदस्त गलबा हुवा फिर भी आप मेहमानों से मिलते रहे और उनके सवालों के जवाब से उनको मुतमइन करते रहे वक़्त गुज़रता गया और आप अपनी आखिरी मंज़िल से क़रीब होते रहे।
15 मुहर्रमुल हराम को अखयारो अबरार आए, उन्होंने अर्ज़ की कि चंद रोज़ और आप दुनिया में क़याम करें तो क्या हर्ज है ? आपने फरमायाा कि बारह साल से ज़मीनों आसमान की कुंजी हक़ तआला ने मेरे हाथ में दी है, लेकिन मैं अदब की खातिर कोई तसर्रुफ (इस्तेमाल) नहीं किया, ज़िंदगी का भी मुझे एख्तियार दिया गया है जब तक चाहूं इस खाक दान सलफी में पड़ा रहूं। लेकिन अब दिल नहीं चाहता 16 मुहर्रमुल हराम को अबदाल अयादत के लिए आए 17 मुहर्रमुल हराम को औदात आए और पुछा की आप अपना मनसब किसे देते हैं। फरमाया कि अभी तक कोई शख्स तै नहीं हुवा है, फिर तीन दिन तक यह बेहोशी तारी रही अलबत्ता नमाज़ के औक़ात में जिस्म में हरकत आ जाती और नमाज़ अदा कर लेते 20 मुहर्रम से 23 तक दूरो नज़दीक से लोग आते और हर एक को आपने बशारत व नवेद सआदत से सरफराज़ फरमाया।इस तीन रोज़ के अंदर इस क़दर खलाइक़े तौबा व अरादत से मुशर्रफ हुई कि उसकी तफसील खुद्दाम को मालूम है।
27 मुहर्रमुल हराम को फजर के वक़्त इमाम गैब आए आप ने बाएं तरफ के इमाम को पेश नमाज़ बनाया सब को हैरत हुई कि हज़रत ने खिलाफे आदत दुसरे शख्स को क्यों इमाम किया, नुरुल ऐन ने कहा आज दुनिया तारीक हो जाएगी मुक़तदी को इमाम बनना अलामते है कि अपना मक़ाम खास उस को सुपुर्द किया है, हज़रत ने मुक़र्ररा वज़ाईफ अदा किए और नमाज़े इशराक़ के बाद मकान में तशरीफ लाए एक शख्स को दरवाज़े पर मुतअय्यन किया कि खबरदार किसी ना महरम को अंदर आने मत देना, थोड़ी देर के बाद अखयारो अबरार आए अबदालो ओताद आए अहबाब व असहाब खास जमा हो गए।
शैख नजमुद्दीन पहले ही से मौजूद थे, आपने फरमायाा कि हक़ तआला ने जब तक तुम्हारे दरमियान रखा अब मुझ को वापसी का हुक्म है उसकी तअमील करूंगा, कोई शख्स मेरे जाने से गमगीन ना हो मैं हमेशा तुम्हारे अहवाल का निगरां रहूंगा और हमेशा मुझ को अपने साथ पाओगे, अपना सजदा नुरुल ऐन को तफवीज़ किया और फातिहा पढ़ा उसके बाद चंद वर्क़ सादा लेकर क़ब्र शरीफ में उतर गए, और एक रात दिन उसी क़ब्र में रहे वहां से एक नसीहत नामा लिख कर लाए (उसी का नाम बाद में रिसाला क़ब्रिया हुवा)