(मीलदे मुस्तफा 02)

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(मीलदे मुस्तफा 02)

अपनी बात

 उरवा ने समझ लिया था कि जब नबीए करीम ﷺ का थूक सहाबा ज़मीन पर गिरने नहीं देते तो ख़ून कैसे ज़मीन पर गिरने देंगे ? इन तारीख़ी वाकियात व हादसात को सैहूनी ताक़तों ने पढ़ा इसलिये उनकी कोशिश होती है कि मुसलमानों के सीनों से हुजूर ﷺ की मुहब्बत के जज़्बे को ख़त्म कर दिया जाए। इसके लिये उन्होंने मुसलमानों के दिलों में शिर्क व बिदअत का ख़ौफ़ पैदा किया कि या रसूलल्लाह ﷺ कहना शिर्क है और मीलाद मनाना बिदअत है वगैरा वगैरा। इसलिये मैंने ज़रूरी समझा कि नौजवान भाईयों के जनो फिक्र से शुब्हों को दूर किया जाए। 

 मुखालिफ़ीन अहले सुन्नत के मामूलात पर यूँ तो कई एक एतराज़ात करते हैं ख़ास तौर से मीलाद मुबारक की महफ़िल को बिदअत क़रार देते हैं इसलिये मैंने इस किताब में ईद मीलादुन्नबी ﷺ पर किये गए एतराज़ात का कुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब तहरीर किया है ताकि अहले सुन्नत के मुखालिफ़ीन की जानिब से नौजवानों के दिलों में जो शक व शुब्हा पैदा कर दिया गया है वो दूर हो जाए और आम आदमी भी नबीए करीम ﷺ से मुहब्बत करने वाला और आप ﷺ का मीलाद मनाने वाला बन जाए। अल्लाह तआला से दुआ है कि ख़ाकसार की किताब को आका ﷺ के वसीले से कुबूल फ़रमाए और आका ﷺ के नअलैन का सदका अता फरमाए। आमीन !(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 05)


निसार तेरी चहल पहल पर हज़ारों ईदें रबीउल अव्वल 
सिवाए इबलीस के जहाँ में सभी तो खुशियाँ मना रहे हैं_ 

इमाम इब्ने कसीर रादिअल्लाहु तआला अन्हु बयान करते हैं कि इबलीस चार बार बुलन्द आवाज़ से रोया है : पहली बार जब अल्लाह ने उसे लईन ठहरा कर उस पर लअनत की दूसरी बार जब उसे ज़मीन पर भेजा गया, तीसरी बार हुज़ूरे अकदस ﷺ की विलादत के वक़्त और चौथी बार जब सूरए फ़ातिहा नाज़िल हुई। ( अल - बिदाया वन्निहाया मुतर्जम, हिस्साः 2, पेजः 570,  

 मालूम हुआ कि मीलादुन्नबी ﷺ पर चीखना, चिल्लाना, रोना और उसकी मुखालफत करना इबलीस का तरीका है। मोमिन तो अपने आका ﷺ की विलादत पर खुशियाँ मनाता है। मीलाद का मतलबः पैदा होने का ज़माना या पैदाइश का वक़्त है। ( फीरोज़ुल्लुगात, पेजः 1332 ) 

आम बोल चाल में मीलाद से मुराद ज़िक्र की महफ़िल है जिसमें रसूलुल्लाह ﷺ की विलादत का ज़िक्र हो, कुरआन पढ़ा जाए, नात और मन्बत वगैरा पढ़ी जाए। इसी तरह जश्ने ईद मीलादुन्नबी ﷺ से मुराद रसूलुल्लाह ﷺ की आमद की खुशी में जुलूस निकालना, खुशी मनाना, सदक़ा व ख़ैरात करना और विलादत के दिन रोज़ा रखना वगैरा है।(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 07)



मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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