(मीलदे मुस्तफा 01)
राय गेरामी:मीलाद शरीफ की अज़मतों का क्या कहना ! अल्लाह रब्बुल इज्ज़त ने कुरआन करीम में मीलादे मुस्तफ़ा ﷺ का ज़िक्र फ़रमाया है। अम्बिया - ए- केराम और मुर्काब फरिश्ते उस महफिल में मौजूद थे। खुद हुज़ूर सरकार दो आलम ﷺ अपनी विलादत की तारीख़ मनाया करते थे, सहाबा केराम ने भी हुज़ूर ﷺ की विलादत व बिअसत और आपके ज़रिये ईमान की दौलत से सरफ़राज़ होने पर अल्लाह के शुक्र की अदायगी के लिये महफिलें मुन्अकिद कीं। रसूले आज़म ﷺ मस्जिदे नबवी में नात की महफ़िल मुन्अकिद करते, हज़रत हस्सान रादिअल्लाहु तआला अन्हु और दूसरे सहाबा हुज़ूर ﷺ की बारगाह में अकीदत व मुहब्बत के फूल पेश करते थे। हदीस व तारीख़ की किताबों में इसके दर्जनों सुबूत मौजूद हैं।(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 02)
इसी बिना पर नस्ल दर नस्ल मुसलमान मीलाद मुबारक की महफ़िलें मुन्अकिद करते रहे हैं और रसूल की गुलामी का सुबूत पेश करके ख़ुदा के इनामात का ज़ख़ीरा नाम ए आमाल में जमा कराते रहे हैं। मगर हाय रे क़िस्मत की बरबादी ! जिस जाते गेरामी की मीलादे मुबारक से बन्दगाने ख़ुदा को ईमान व इस्लाम की दौलतें नसीब हुईं उसी की महफिले मीलाद को नाम निहाद मुसलमान बिदआत व खुराफात में शुमार कर रहे हैं, सादा दिल नौजवान और ऐसे पढ़े लिखे लोग उनका ख़ास निशाना हैं जो दुनिया की तालीम से अगर्चे ख़ातिरख्वाह आरास्ता हैं लेकिन दीनी शुर व सलीके से बिल्कुल कोरे हैं। ऐसे में ज़रूरत थी एक ऐसी किताब की जो आम फम लबो लहजे में हो ताकि आम लोगों के जह्नो फिक्र की सफाई का ज़रिया बन जाए और अह्ले सुन्नत के मुखालिफ़ीन का मुँह तोड़ जवाब हो जाए।( ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 02)
अपनी बात
इस्लाम मुखालिफ ताक़तें हमेशा से कोशिश करती रही हैं कि किसी तरह मुसलमानों के दिलों से नबीए करीम ﷺ की मुहब्बत को निकाल दिया जाए ताकि मुस्लिम क़ौम ईमान की रूह से महरूम होकर बरबादी की घाट उतर जाए। सलमान रूशदी हो या तस्लीमा नसरीन या डन्मार्क का गुस्ताख़ कार्टूनिस्ट सब ने हुजूर ﷺ की शान ही पर हमला किया। यहाँ क़ाबिले तवज्जो बात ये है कि सुल्हे हुदैबिया के बाद जब उरवा अपनी क़ौम में वापस आया तो लोगों से कहने लगाः
ऐ लोगो ! मैंने कैसरो किसरा और नजाशी बादशाहों को देखा है मगर जितनी ताज़ीम मुहम्मद ﷺ के सहाबा उनकी करते हैं उन बादशाहों की नहीं की जाती। अल्लाह की क़सम ! जब मुहम्मद ﷺ थूकते हैं तो सहाबा उसे अपने हाथों में लेकर अपने चेहरे और जिस्म पर मलते हैं, जब कोई हुक्म देते हैं तो सहाबा फ़ौरन उसकी तामील करते हैं, जब वुज़ू करते हैं तो सहाबा बचे हुए पानी को हासिल करने के लिये कोशिश करते हैं, जब सहाबा उनसे बात करते हैं तो अपनी आवाज़ नीची रखते हैं और अदब से निगाहें झुका लेते हैं। फिर उरवा ने कहा कि तुम उनसे जंग का इरादा छोड़ दो और उनकी बात मान लो। ( सहीह बुखारी, हिस्सा : 3 , हदीस : 889 )(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 04)
मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262