मौलूदुन्नबी
जिस मुक़द्दस मकान में हुजूरे अक्दस ﷺ की विलादत हुई, तारीखे इस्लाम में उस मकाम का नाम "मौलूदुन्नबी" (नबी की पैदाइश की जगह) है, येह बहुत ही मुतबर्रिक मकाम है सलातीने इस्लाम ने इस मुबारक यादगार पर बहुत ही शानदार इमारत बना दी थी, जहां अहले हरमैने शरीफैन और तमाम दुन्या से आने वाले मुसलमान दिन रात महफ़िले मीलाद शरीफ़ मुन्अक़िद करते और सलातो सलाम पढ़ते रहते थे!
चुनान्चे हज़रते शाह वलिय्युल्लाह साहिब मुहद्दिष देहलवी ने अपनी किताब "फुयूजुल हरमैन" में तहरीर फ़रमाया है कि मैं एक मरतबा उस महफिले मीलाद में हाज़िर हुवा, जो मक्कए मुकर्रमा में बारहवीं रबीउल अव्वल को "मौलूदुन्नबी" में मुन्अकिद हुई थी जिस वक्त विलादत का ज़िक्र पढ़ा जा रहा था तो मैं ने देखा कि यक बारगी उस मजलिस से कुछ अन्वार बुलन्द हुए, मैं ने उन अन्वार पर गौर किया तो मालूम हुवा कि वोह रहमते इलाही और उन फ़िरिश्तों के अन्वार थे जो ऐसी महफ़िलों में हाज़िर हुवा करते हैं।
जब हिजाज़ पर नज्दी हुकूमत का तसल्लुत हुवा तो मक़ाबिरे जन्नतुल मअला व जन्नतुल बक़ीअ के गुम्बदों के साथ साथ नज्दी हुकूमत ने इस मुक़द्दस यादगार को भी तोड़ फोड़ कर मिस्मार कर दिया और बरसों येह मुबारक मक़ाम वीरान पड़ा रहा, मगर मैं जब जून सि 1959 ई. में इस मर्कज़े खैरो बरकत की ज़ियारत के लिये हाज़िर हुवा तो मैं ने उस जगह एक छोटी सी बिल्डिंग देखी जो मुक़फ्फ़ल थी, बा'ज़ अरबों ने बताया कि अब इस बिल्डिंग में एक मुख़्तसर सी लाएब्रेरी और एक छोटा सा मक्तब है, अब इस जगह न मीलाद शरीफ़ हो सकता है न सलातो सलाम पढ़ने की इजाजत है मैं ने अपने साथियों के साथ बिल्डिंग से कुछ दूर खड़े हो कर चुपके चुपके सलातो सलाम पढ़ा, और मुझ पर ऐसी रिक्क़त तारी हुई कि मैं कुछ देर तक रोता रहा।
क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 72