(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि05)

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(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि05)

गौसे पाक का बचपन

           ख़ानक़ाह में एक बा पर्दा खातुन अपने मुन्ने की लाश चादर में लपेटे सीने से चिपटाए जा़रो क़तार रो रही थी। इतने में मदनी मुन्ना दौड़ता हुवा आता है और हमदर्दाना लहजे में उस खातुन से रोने का सबब दरयाफ़्त करता है। वो रोते हुवे कहती है बेटा ! मेरा शोहर अपने लखते जिगर के दीदार की ह़सरत लिये दुन्या से रुख्सत हो गया है। ये बच्चा उस वक़्त पेट में था और अब ये अपने बाप की निशानी और मेरी ज़िन्दगानी का सरमाया था, ये बीमार हो गया, में इसे इसी खानका़ह में दम करवाने ला रही थी की रस्ते में इस ने दम तोड़ दिया है। में फिर भी बड़ी उम्मीद ले कर यहां हा़ज़िर हो गई की इस ख़ानक़ाह वाले बुज़ुर्ग की विलायत की हर तरफ धूम है और इनकी निगाहें करम से अब भी बहुत कुछ हो सकता है, मगर वो मुझे सब्र की तल्किन कर के अंदर तशरीफ़ ले जा चुके है। ये कह कर वो खातुन फिर रोने लगी। मदनी मुन्ने का दिल पिघल गया और उस की रह़मत भरी ज़बान पर ये अल्फ़ाज़ खेलने लगे मोह़तरमा ! आप का मुन्ना मरा हुवा नहीं बल्कि ज़िन्दा है, देखो तो सही वो ह़रकत कर रहा है ! दुख्यारि मा ने बेताबी के साथ अपने मुन्ने की लाश पर से कपडा उठा कर देखा तो वो सच मुच ज़िन्दा था और हाथ-पैर हिला रहा था।

     इतने में ख़ानक़ाह वाले बुज़ुर्ग अंदर से वापस तशरीफ़ लाए, बच्चे को ज़िन्दा देख कर सारी बात समझ गए और लाठी उठा कर ये कहते हुवे मुन्ने की तरफ लपके की तू ने अभी से तक़दीरें खुदावन्दि के सरबस्ता राज़ खोलने शुरुअ़ कर दिये है।मुन्ना वहां से भाग खड़ा हुवा और वो बुज़ुर्ग उसके पीछे दौड़ने लगे मदनी मुन्ना यकायक क़ब्रिस्तान की तरफ मुड़ा और बुलंद आवाज़ से पुकारने लगा : ऐ क़ब्र वालो ! मुझे बचाओ!तेज़ी से लपकते हुवे बुज़ुर्ग अचानक ठिठक कर रुक गए, क्यूं की क़ब्रस्तान से तिन सो मुर्दे उठ कर उसी मदनी मुन्ने की ढाल बन चुके थे और वो मुन्ना दूर खड़ा अपना चाँद सा चेहरा चमकाता मुस्कुरा रहा था। उस बुज़ुर्ग ने बड़ी ह़सरत के साथ मुन्ने की तरफ देखते हुवे कहा बेटा ! हम तेरे मर्तबे को नहीं पहुंच सकते,  इस लिये तेरी मर्ज़ी के आगे अपना सरे तस्लीम खम करते है !

आप जानते है वो मुन्ना कौन था ?

उस मुन्ने का नाम "सय्यिद अ़ब्दुल क़ादिर"था और आगे चल कर वो गौसुल आ'ज़म के लक़ब से मशहूर हुवे। और वो बुज़ुर्ग उन के नानाजान ह़ज़रते सय्यिदुना अ़ब्दुल्लाह सूमई रह़मतुल्लाही अ़लैहि थे।(गौसे पाक का बचपन, सफा 4-5)

 तालिबे दुआ 
 मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया (बिहार)




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