(गुस्ताख ए रसूल पर लानत भेजना कैसा है?)

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(गुस्ताख ए रसूल पर लानत भेजना कैसा है?)

सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की उमर ने अल्लाह व रसूल की शान में गुस्ताखी की और ऐज़ा पहुंचाई तो उस पर लानत भेजना जायज़ है या नहीं ? ज़ैद कहता है कि जायज़ नहीं यानी किसी मुअय्यन शख्स पर लानत नहीं भेज सकते अगर्चे लईन काफिर हो, हां अगर उसका कुफ्र पर मरना साबित हो जाए तो लानत भेज सकते हैं, अलबत्ता गैर मुअय्यन शख्स पर लानत भेज सकते हैं जैसे काफिरों पर लानत झूठों पर लानत वगैरा वगैरा और दलील में फतावा रज़विया और मिरातुल मनाजीह की इबारत पेश करता है, जबकि बकर कहता है कि जो अल्लाह व रसूल को ऐज़ा पहुंचाए उस पर लानत भेज सकते हैं और जो फतावा रज़विया व मिरातुल मनाजीह की इबारत है वहां बिला वजह किसी पर लानत भेजने की मुमानिअत है दरियाफ्त तलब अमर यह है की 
तहक़ीक़ क्या है ? किसका कौल दुरुस्त है आगाह फरमाएं,
मुस्तफती : मुतअल्लिम सादिक़ अली खान

بسم اللہ الرحمن الرحیم
الحمدللہ رب السموات والارض والصلوۃ والسلام علی سید الانبیاء والمر سلین  وعلیٰ الہ واصحابہ اہل بیتہ اجمعین۔ وقال اللہ تعا لیٰ والذین یؤذون رسولﷲ لہم عذاب الیم0 ان الذین یؤذونﷲ ورسولہ لعنہم ﷲ فی الدنیا والاخرۃ واعدلہم عذابا مھینا ولعنۃ اللہ علی الکذبین۔صدق اللہ العظیم 

जवाब : बकर का क़ौल दुरुस्त है यानी जो अल्लाह पाक व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का गुस्ताख हो एजा पहुंचाता हो तो जुर्म साबित होने के बाद बा तखसीस लानत भेज सकते हैं, अलबत्ता बिला वजह किसी मुअय्यन शख्स पर लानत नहीं भेजना चाहिए कि जिस तरह किसी मुसलमान को काफिर कहने से कुफ्र पलटता है जबकि वह काफीर ना हो की यूं हीं किसी पर लानत भेजने से भेजने वाले पर पलटता है जबकि वह उसका मुस्तहिक़ 
ना हो जैसा की हदीस शरीफ में है

  ’’وَعَنِ ابْنِ عَبَّاسٍ اَنَّ رَجُلًا لَعَنَ الرَّیْحَ عِنْدَ النَّبِیِّ صلی اللہ علیہ وسلم فَقَالَ لَا تَلْعَنُوْا الرِّیْحَ فَاِنَّھَا مَاْ مُوْرَۃٌ وَاِنَہ، مَنْ لَّعُنْ شَیْاً لَیْسَ لَہ، بِاَھْلٍ رَجَعَتِ الْلَعْنَۃُ عَلَیْہِ رَوَاہُ التِّرْمِذِیُّ‘‘

    और हज़रत इब्ने अब्बास रजि अल्लाह तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने एक आदमी हवा पर लानत की जो लानत की मुस्तहिक़ ना थी तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि हवा पर लानत ना करो क्योंकि वह तो अल्लाह की जानिब से मामूर है और जो आदमी किसी ऐसी चीज़ पर लानत करता है जो लानत के मुस्तहिक़ नहीं होती तो वह लानत उसी लानत करने वाले 
पर लौट आती है,(मिश्कात शरीफ ४१३)

      इस हदीसे मुबारका से यही ज़ाहिर है कि लानत उस पर भेजी जाए जो लानत का मुस्तहिक़ है अगर मुतलक़न लानत भेजने की मुमानिअत होती तो यह इबारत ना होती कि जो आदमी किसी ऐसी चीज़ पर लानत करता है जो लानत की मुस्तहिक़ नही होती तो वह लानत उसी लानत करने वाले पर लौट आती है बल्कि मुतलक़न मना कर दिया जाता, बल्कि क़ुरआन ने काफिरों पर ज़ालिमों पर झूठों पर लानत भेजी है यूं हीं अहादीसे तैय्यबा में कई एक पर लानत भेजी गई है मसलन गोदना गोदवाने वाली मर्दों की मुशाबिहत करने वाली वगैरा वगैरा,

       हां जिसके बारे में मालूम ना हो तो बिला वजह किसी पर लानत नहीं भेजनी चाहिए लेकिन जब मालूम हो जाए कि फुलां अल्लाह पाक और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एज़ा पहुंचाता है गुस्ताखी करता है तो उस पर लानत भेज सकते हैं जैसा कि सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं कि अगर सवाल किया जाए कि क्या यज़ीद पर लानत करना जायज़ है क्योंकि वह इमामे हुसैन रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का क़ातिल है या उसने आपके क़त्ल का हुक्म दिया है, तो हम कहते हैं कि यह असलम साबित नहीं जब तक यह साबित ना हो जाए तो उसे क़ातिल या उसका आमिर ना कहा जाए चे जाए कि उस पर लानत की जाए क्योंकि बगैर तहक़ीक़ किसी मुसलमान की तरफ कबीरा गुनाह की निस्बत करना जायज़ नहीं, हां यह कहना जायज़ है कि हज़रत अली रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू को ईब्ने मुलजिम और हज़रत उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू को अबू लूलू ने शहीद किया क्योंकि यह तवातिर से साबित है तो बगैर तहक़ीक़ किसी मुसलमान की तरफ फिस्क़ याकुफ्र की 
निस्बत करना हरगिज़ जायज़ नहीं। (बहवाला फतावा रज़विया जिल्द १० / सफा १९७ / दावते इस्लामी)

        देखो सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने यहां लानत भेजने से मुतलक़न मना नहीं किया है बल्कि फरमाया जब तक यह साबित ना हो जाए तो उसे क़ातिल या उसका आमिर ना कहा जाए यानी इमामे आज़म अबू हनीफा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू के नज़दीक यज़ीद कुफ्र साबित नहीं है इसलिए काफिर कहने से मना फ़रमाया और जब काफिर नहीं कह सकते तो उस पर लानत क्यों कर भेज सकते हैं, मगर जिन अइम्मा मसलन इमाम अहमद बिन हंबल को यज़ीद का कुफ्र साबित हुआ तो उन्होंने काफिर भी लिखा है और लानत भी भेजी है जिसको फतावा रज़विया में सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने तहरीर की है, फरमाते हैं कि यज़ीद पलीद अलैह मुस्तहक़्क़ा मिनल अज़ीज़ अल मजीद क़तअन यक़ीनन बइजमा ए अहलेसुन्नत फासिक़ व फाजीर व जरी अलल कबाइर था इस क़द्र पर अइम्मा ए अहले सुन्नत का इत्तिबाक़ व इत्तिफाक़ है सिर्फ उसकी तकफीर व लअन में एख्तिलाफ फरमाया, इमाम अहमद बिन हंबल रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू और उनके इत्तिबा व मुवाफिक़ीन उसे काफिर कहते और बा तखसीस नाम उस पर लअन करते हैं और इस आयते करीमा से उस पर सनद लाते हैं। 

فہل عسیتم ان تولیتم ان تفسدوا فی الارض وتقطعوا ارحامکم اولئک الذین لعنہم اﷲ فاصمہم واعمی ابصارھم

        क्या क़रीब है कि अगर वालि ए मुल्क हो तो ज़मीन में फसाद करो और अपने नस्बी रिश्ता काट दो, यह है वह लोग जिन पर अल्लाह तआला ने लानत फरमाई तो उन्हें बहरा कर दिया और उनकी आंखें फोड़ दें। 
(क़ुरआनुल करीम ४७ / २२-२३)

      शक़ नहीं कि यज़ीद ने वालि ए मुल्क होकर ज़मीन में फसाद फैलाया हरमैन तैयबैन व खुद काबा मुअज़्ज़मा व रौज़ा ए तैयबा की सख्त बे हुरमतियां कीं, मस्जिद ए करीम में घोड़े बांधे, उनकी लीद और पेशाब मेंबरे अतहर पर पड़े, तीन (३) दिन मस्जिद-ए-नबवी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम बे आज़ान व नमाज़ रही, मक्का व मदीना व हुजाज़ में हजारों सहाबा ताबिईन बेगुनाह शहीद किए, काबा मुअज़्ज़मा पर पत्थर फेंके, गिलाफ शरीफ फाड़ा और जलाया, मदीना तैयबा की पाक दामन पारसाई तीन शबाना रोज़ अपने खबीस लश्कर पर हलाल कर दें, रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के जिगर पारे को ३ दिन बे आब व दाना रख कर मअ हमराहियों के तैग़ ज़ुल्म सेप्यासा ज़िब्ह किया, मुस्तफा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के गोद के पाले हुए तन नाज़नीन पर बादे शहादत घोड़े दौड़ा ए गए कि तमाम इस्तखवान मुबारक चूर हो गए, सरे अनवर की मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का बोसा गाह था काटकर नेज़ा पर चढ़ाया और मंज़िलों फिराया, हरमे मोहतरम मुखदरात ए मशकूए रिसालत क़ैद किए गए और बे हुरमती के साथ उस खबीस के दरबार में लाए गए, इस से बढ़कर क़तए रहम और ज़मीन में फसाद किया होगा, मलउन है वह जो उन मलऊन हरकात को फिस्क़ व फुजूर ना जाने, क़ुरआन अज़ीम में सराहत उस पर "लअनहुमुल्लाह"(उन पर अल्लाह की लानत है फरमाया। (अल क़ुरआनुल करीम ३३ / ५७)

        लिहाज़ा इमाम अहमद और उनके मुवाफिक़ीन उन पर लानत फरमाते हैं, और हमारे इमामे आज़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने लअन व तकफीर से एहतियातन सुकूत फरमाया कि उस से फिस्क़ तो व फुजूर मुतवातिर हैं कुफ्र मुतवातिर नहीं, और बहाले एहतिमाल निस्बत ए कबीरा भी जायज़ नहीं ना की तकफीर और इमसाल वईदात मशरुत बअदम तौबा हैं

لقولہ تعالٰی،فسوف یلقون غیا الامن تاب

तो अन क़रीब दोज़ख में गै का जंगल पाएंगे मगर जो ताईब हो गए। (अल क़ुरआनुल करीम १९ / ५९)

      और तौबा तादम गर्गरा मक़बूल है और उसके अदम पर जज़म नहीं और यही अहवत व असलम है मगर उसके फिस्क़ व फुजूर से इन्कार करना और इमामे मज़लूम पर इल्ज़ाम रखना ज़रूरीयाते मज़हबे अहले सुन्नत के खिलाफ है और दलालत व बद मज़हबी साफ है, बल्कि इंसाफन यह उस क़ल्ब से मुतसव्वुर नहीं जिसमें मोहब्बते सैयद ए आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का शम्मा हो। 

وسیعلم الذین ظلموا ای منقلب ینقلبون

अब जानना चाहते हैं की ज़ालिम किस करवट पलटा खाएंगे (क़ुरआनुल करीम २६/२२७)

      शक नहीं की इसका क़ाईल नस्बी मरदूद और अहले सुन्नत का अदू व अनूद है, ऐसे गुमराह बद्दीन से मसअला मुसाफहा की शिकायत बे सूद है, उसकी गायत इसी क़द्र की है उसने क़ौल सही का खिलाफ किया और बिला वजह शरई दस्त कशी कर के एक मुसलमान का दिल दुखाया मगर वह तो उन कलिमाते मलऊन से हज़रत बतूल ज़हरा व अली मुर्तुज़ा और खुद हज़रत सैयदुल अंबिया अलैह व अलैहिम अफज़लुस्सलात वस्सलाम का 
दिल दुखा चुका है, अल्लाह वाहिद क़ह्हार को एजा दे चुका है। 

      والذین یؤذون رسول ﷲ لہم عذاب الیم۰ ان الذین یؤذون ﷲ ورسولہ لعنہم ﷲ فی الدنیا والاخرۃ واعدلہم عذابا مھینا

      और जो रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एज़ा देते हैं उनके लिए दर्दनाक अज़ाब है, बेशक जो एज़ा देते हैं अल्लाह और उसके रसूल को उन पर अल्लाह की लानत है दुनिया और आखिरत में और अल्लाह ने उनके लिए ज़िल्लत का अज़ाब तैयार कर रखा है,(फतावा रज़विया जिल्द १४ सफा ५९२ ता ५९४ / दावते इस्लामी)

         चूंकि इमाम अहमद बिन हंबल को यज़ीद का कुफ्र साबित हुआ तो बतखसीस यज़ीद पर लानत भेजी और उसी आयते करीमा को दलील बनाया जो गैर मुअय्यन के लिए थी, यूंही जब अल्लाह पाक और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी करने वाले यानी अल्लाह पाक और रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को तकलीफ पहुंचाने वाले, एज़ा देने वाले,उमर का जुर्म साबित हो जाए तो उस पर बतखसीस लानत भेज सकते हैं जैसे कि यज़ीद पर इमाम अहमद बिन हंबल और उनके मुत्तबईन लानत भेजते हैं

    हो सकता है कि कोई यह कहे कि यज़ीद का कुफ्र पर मरना साबित हो गया था इस लिए उस पर लानत भेजी गई है और उमर तो अभी ज़िंदा है तो फिर उस पर लानत क्यों ?तो हम कहते हैं कि हदीसे मुबारका से साबित है कि नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ज़िंदो पर लानत भेजी है मुलाहिज़ा हो। 

(۱) عَنْ عَبْدِ اللَّهِ بْنِ الزُّبَيْرِ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا: أَنَّ رَسُولَ اللَّهِ ﷺ  لَعَنَ الْحَكَمَ وَ وَلَدَهُ(هَذَا الْحَدِيثٌ صَحِيحُ الْإِسْنَادِ نیشابوری،  محمد بن عبد الله، المستدرک على الصحیحین، ج ۴ ص ۵۲۸  بیروت، دار الکتب العلمیة، طبع اول، ۱۴۱۱۱

(१)हज़रते अब्दुललाह बिन जूबेर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा ने फरमाया कि नबी ए करीम सल्लल्लाहु अलैहे वसल्लम  ने हकम और उसके बाप पर लानत भेजी । 
   
(२)हज़रतेआईशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा ने फरमाया कि मरवान के बाप पर लानत भेजी गई जबकि मरवान बाप के पीठ में था । (तारीखे खुलफा जिल्द ४ सफा १२८ ऐज़न ५२८)

(३)अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि रसूले खुदा सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जंग ए ओहद के दिन अबू सुफयान पर लानत भेजी)(तिर्मिज़ी पाठ ५ पेज २२७ मिश्र)

        मज़कूरा बाला हदीस में उन हज़रात पर लानत भेजी गई है जो ज़िंदा थे और उसी में हज़रत अबू सुफियान रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू भी शामिल हैं जो जंग ए ओहद के वक़्त मुसलमान नहीं हुए थे बल्कि काफिर थे और कुफ्फार की तरफ से मुसलमानों को काफी तकलीफ पहुंचाई थी उस वक़्त हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन पर लानत भेजी हालांकि बाद में मुसलमान हुए जो सब पर अयां है। 

(۴)’’عَنْ عَائِشَةَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهَا، ‏‏‏‏‏‏قَالَتْ:‏‏‏‏ لَمَّا قَدِمَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ الْمَدِينَةَ وُعِكَ أَبُو بَكْرٍ، ‏‏‏‏‏‏وَبِلَالٌ، ‏‏‏‏‏‏فَكَانَ أَبُو بَكْرٍ إِذَا أَخَذَتْهُ الْحُمَّى، ‏‏‏‏‏‏يَقُولُ:‏‏‏‏ كُلُّ امْرِئٍ مُصَبَّحٌ فِي أَهْلِهِ وَالْمَوْتُ أَدْنَى مِنْ شِرَاكِ نَعْلِهِ وَكَانَ بِلَالٌ إِذَا أُقْلِعَ عَنْهُ الْحُمَّى يَرْفَعُ عَقِيرَتَهُ، ‏‏‏‏‏‏يَقُولُ:‏‏‏‏ أَلَا لَيْتَ شِعْرِي هَلْ أَبِيتَنَّ لَيْلَةً بِوَادٍ وَحَوْلِي إِذْخِرٌ وَجَلِيلُ وَهَلْ أَرِدَنْ يَوْمًا مِيَاهَ مَجَنَّةٍ وَهَلْ يَبْدُوَنْ لِي شَامَةٌ وَطَفِيلُ قَالَ:‏‏‏‏ اللَّهُمَّ الْعَنْ شَيْبَةَ بْنَ رَبِيعَةَ، ‏‏‏‏‏‏وَعُتْبَةَ بْنَ رَبِيعَةَ، ‏‏‏‏‏‏وَأُمَيَّةَ بْنَ خَلَفٍ، ‏‏‏‏‏‏كَمَا أَخْرَجُونَا مِنْ أَرْضِنَا إِلَى أَرْضِ الْوَبَاءِ، ‏‏‏‏‏‏ثُمَّ قَالَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‏‏‏‏ اللَّهُمَّ حَبِّبْ إِلَيْنَا الْمَدِينَةَ كَحُبِّنَا مَكَّةَ أَوْ أَشَدَّ، ‏‏‏‏‏‏اللَّهُمَّ بَارِكْ لَنَا فِي صَاعِنَا وَفِي مُدِّنَا وَصَحِّحْهَا لَنَا، ‏‏‏‏‏‏وَانْقُلْ حُمَّاهَا إِلَى الْجُحْفَةِ، ‏‏‏‏‏‏قَالَتْ:‏‏‏‏ وَقَدِمْنَا الْمَدِينَةَ وَهِيَ أَوْبَأُ أَرْضِ اللَّهِ، ‏‏‏‏‏‏قَالَتْ:‏‏‏‏ فَكَانَ بُطْحَانُ يَجْرِي نَجْلًا تَعْنِي مَاءً آجِنًا‘‘

        हज़रत आईशा सिद्दीक़ा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा से मरवी है उन्होंने कहा कि जब रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम मदीना तशरीफ लाए तो अबू बकर और बिलाल रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा बुखार में मुब्तिला हो गए, अबू बकर जब बुखार में मुब्तिला हुए तो यह शेर पढ़ते,हर आदमी अपने घर वालों में सुब्ह करता है हालांकि उसकी मौत उसकी जूती के तिस्मा से भी ज़्यादा क़रीब है,और हज़रत बिलाल रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का जब बुखार उतरता तो आप बुलंद आवाज़ से यह शेर पढ़ते,काश ! मैं एक रात मक्का की वादी में गुज़ार सकता और मेरे चारों तरफ अज़खर और जलील (घास) होतीं काश ! एक दिन मैं मुजन्ना के पानी पर पहुंचता और काश ! मैं शाम्मा और तुफैल (पहाड़ों) को देख सकता,कहा की ए मेरे अल्लाह ! शैबा बिन रबिआ उत्बा बिन रबिआ और उमैया बिन खल्फ मरदूदों पर लानत कर, उन्होंने अपने वतन से इस वबा की ज़मीन में निकाला है,रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने यह सुनकर फरमाया ऐ अल्लाह ! हमारे दिलों में मदीना की मोहब्बत इसी तरह पैदा कर दे जिस तरह मक्का की मोहब्बत है बल्कि उससे भी ज़्यादा,ऐ अल्लाह ! हमारे साअ और हमारे मुद में बरकत अता फरमा और मदीना की आब व हवा हमारे लिए सेहत खेज़ कर दे यहां के बुखार को जहफा में भेज दे,हज़रते आईशा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हा ने बयान किया कि जब हम मदीना आए तो यह अल्लाह की सबसे ज़्यादा वबा वाली सर ज़मीन थी, उन्होंने कहा मदीना में बत़हान नामी एक नाला से ज़रा ज़रा बदमज़ा और बदबूदार पानी बहा करता था। (सही बुखारी जिल्द १ सफा २५३)

        इस हदीसे मुबारका में बतखसीस शैबा बिन रबीआ, उत्तबा बिन रबीआ और उमैया बिन खल्फ पर लानत भेजी गई है वह भी हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सामने और नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने मना भी नहीं किया, यह भी याद रहे की मज़कूरा बाला शख्स के मरने के बाद लानत नहीं भेजी गई है बल्कि वह सब उस वक़्क ज़िंदा थे बाद में जंग-ए-बदर में मारे गए हैं जो हिजरत के दो (२) साल बाद हुई है 

         मज़कूरा बाला तमाम इबारतों से यही साबित होता है कि अल्लाह और रसूल को एज़ा पहुंचाने पर बतखसीस लानत भेज सकते हैं जबकि जुर्म साबित हो। और जिनका जुर्म साबित ना हो उन पर बतखसीस लानत भेजना जायज़ नहीं है क्योंकि अगर वह लानत का मुस्तहिक़ नहीं तो लानत भेजने वाले पर खुद पलटेगी,चूंकि उमर का जुर्म साबित है उसने अल्लाह पाक के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में गुस्ताखी किया है जिस से तमाम मुसलमानों को बल्कि अल्लाह पाक व रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को एज़ा पहुंचाई है इस लिए वह लानत का मुस्तहिक़ है और उस पर लानत भेजना जायज़ है। 

       और जिन किताबों में बतखसीस लानत भेजना मना किया गया है वहां बिला वजह किसी पर लानत भेजने से मना किया गया है और जिन हदीसों में ब तखसीस लानत भेजने का तज़किरा है वहां जुर्म साबित होने के बाद लानत भेजी गई है जैसे कि बिला वजह किसी को मारना तकलीफ देना हत्ता कि जानवर को मारना एज़ा पहुंचाना मना है मगर जब वही जानवर एज़ा पहुंचाना शुरू कर दे तो उसे क़त्ल करने का भी हुक्म है।

 واللہ تعا لیٰ اعلم بالصواب

अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
गायडीह पोस्ट चमरुपुर जिला बलरमपुर यू पी 
१३ शाबानुल मुअज़्ज़म १४४२ हि
२७ मार्च २०२० ई
 दिन शनिवार 

हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी 
(दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)
१७ रबिउस सानी १४४३ हि
२३ नवंबर २०२१ ई
दिन मंगलवार 





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