मुरव्वज़े ताज़ियादारी क्या है

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मुरव्वज़े ताज़ियादारी क्या है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन व मुफ्तियाने किराम मसअला ज़ेल के बारे में कि मुर्ववजे ताज़ियादारी क्या है ? आखिर इस की तफसील क्या है? और दौरे हाज़िर में जो ताज़िया रखा जाता है क्या यह मुरव्वजा में शामिल है

 साईल नूरुल हुदा

 जवाब मुरव्वजे ताजियादारी नाजायज़  है कि इस में बहुत सी बातें ऐसी हैं जिन का शरीयत से कोई तअल्लुक़ नहीं मसलन ताज़िया का जुलूस आगे पीछे ढ़ोल ताशे बाजे फिल्मी गीत औरतों का हुजूम और इसी तरह के और खुराफात जो आज कल के ताज़ियादारी में किए जाते हैं यह नाजाज़ व हराम है लोग इन बेहूदा बातों का एहतेमाम करते हैं और जो लोग उस की ताईद करते हैं सब गुनाहगार हैं
 आला हज़रत अलैहिर्रहमतो वर्रिज़वान तहरीर फरमाते हैं कि 
*ताज़िया की अस्ल इस क़दर थी कि रौज़ा इमामे हुसैन की सही नक़्ल बना कर  बनियते तबर्रुक मकान में रखना इसमें कोई खराबी ना थी जहां पे खुर्द ने इस अस्ल को नीस्त व नाबूद कर के सदहा खुराफात तराशें की शरीअत ए मुतह्हरा से अलअमां अलअमां की सदाएं आने लगीं अव्वल तो नफ्स ताज़िया में रौज़ा मुबारक की नक़्ल मलहूज़ ना रही हर जगह नई तराश कहीं इलाक़ाना निस्बत वगैरा फिर कूंचा ब कूंचा गली ब गली अशाअते गम के लिए फिराना उन के गिर्द मातम ज़नी करना उस से मन्नते मांगना उस पे कोई चीज़ चढ़ाना और रातों में ढोल बाजे के साथ तरह तरह के खेल करना वगैरा-वगैरा अब जबकि ताज़ियादारी इस तरीक़ा नामर्ज़िया का नाम है जो क़तअन बिदअत नाजायज़ व हराम है (फतावा फैज़ुर्रसूल जिल्द २ सफा ५१३)

 ऐसे ही लहव लअब के बारे में क़ुरआन मजीद में इरशाद है  और उन लोगों से दूर रहो जिन लोगों ने अपने दीन को खेल तमाशा बना लिया और उन्हें दुनिया की ज़िंदगी ने धोका दे दिया(पारा७)

 और एक जगह है 
 जिन लोगों ने दीन को खेल तमाशा बना लिया और दुनिया की ज़िंदगी ने उन्हें धोका में डाल दिया आज उन्हें हम छोड़ देंगे जैसा कि उन्होंने इस दीन मिलने का ख्याल छोड़ रखा था और जैसा वह हमारी आयतों से इंकार करते थे(पारा८)
 इन आयात को ध्यान में रख कर देखें कि कैसे आज ताज़ियादारी  के नाम पर दीन को तमाशा बना दिया गया है

  हदीस शरीफ़ में है  हुज़ूर फरमाते हैं कि मेरी उम्मत में ऐसे लोग होंगे जो ढ़ोल बाजे को हलाल कर लेंगे(बुखारी ८३७)

 इस हदीस से भी इबरत हासिल कर सकते हैं कि आज हम क्या कर रहे हैं उलमा ए अहले सुन्नत के अक़वाल से भी ज़ाहिर है की मुरव्वजे ताज़ियादारी नाजायज़ व हराम है।
 चुनांचा  हज़रत मुहद्दिसे दहलवी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि अशरए मुहर्रम में जो ताज़ियादारी होती है वह हराम है (फतावा अज़ीज़िया जिल्द 1 सफा 75)

 आला हज़रत अलैहिर्रहमतो वर्रिज़वान तहरीर फरमाते हैं कि 
इस तरह की ताज़ियादारी उस तरीक़ा ना मर्ज़ीया का नाम है जो क़तअन बिदात व नाजायज़ व हराम है
(फ़तावा रज़विया जिल्द २४ सफ़ा ५१३)


  कुछ लोग कहते हैं बनाना जायज़ है घुमाना नाजायज़ आला हज़रत ने इसका भी रद फरमाया और लिखते हैं 
मगर इस नक़्ल में भी अहले बिदअत से एक मुशाबहत और ताज़ियादारी की तोहमत का खदशा और आइंदा अपनी औलाद व अहले एतक़ाद के लिए इबतेला ए बिदअत का अंदेशा है लिहाज़ा सैयदुश्शुहदा की ऐसी तस्वीर भी ना बनाएं जाए(ऐज़न)

 हुज़ूर मुफ्ती ए आज़म हिंद फरमाते हैं कि मुरव्वजे  ताज़ियादारी शरअन नाजायज़ व हराम है।(फतावा मुसतफाविय्या ५३४)

 दौरे हाज़िर में जो राइज है इसी को मुरव्वजे ताज़ियादारी कहते हैं लिहाज़ा मुसलमानों को इन सब से परहेज़ करना लाज़िम व ज़रूरी है
والله تعالی اعلم بالصواب

 अज़ क़लम  
मोहम्मद शफीक़ रज़ा रज़वी

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