(अकीका के लिए जानवर का गोश्त तोल कर लेना कैसा है?)

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(अकीका के लिए जानवर का गोश्त तोल कर लेना कैसा है?)

 अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू 
मुफ्तियाने किराम की बारगाह में अर्ज़ यह है कि एक आदमी अपने बच्चे का अक़ीक़ह करना चाहता है इस तरह कि वह पूरा जानवर नहीं ख़रीदा है बल्कि उसने गोश्त बेचने वाले से बात किया है कि जानवर ज़बह करने के बाद जो गोश्त निकलेगा उसकी क़ीमत दूंगा यानि पूरा जानवर नहीं ख़रीदा बल्कि उस जानवर में जो गोश्त निकलेगा उसकी क़ीमत देगा तो किया इस तरह अक़ीक़ह हो जाएगा ?क़ुरआन व हदीस की रोशनी में जवाब इनायत फरमाएं 

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम 

अल'जवाब:अक़ीक़ह करने वाला कसाई से यह कहे कि आप अपना जानवर अक़ीक़ह की नियत से मेरे बच्चे की तरफ से ज़बह कर देना और जितनी मिक़दार में गोश्त निकलेगा मैं आपको किलो के हिसाब से उतना रुपया अदा कर दूंगा फिर वह गोश्त बेचने वाला (कसाई) अक़ीक़ह की नियत से जानवर उसके बच्चे के नाम से ज़बह कर दे और वह पूरा गोश्त (कलेजी,फेफड़ा,सर,पैर) की क़ीमत अदा कर दे तो इस सूरत में अक़ीक़ह दुरुस्त हो जाएगा, क्योंकि अक़ीक़ह और क़ुर्बानी दुरुस्त होने के लिए जानवर ज़बह होना ज़रूरी है, पूरा जानवर खरीदना ज़रूरी नहीं बल्कि उधार लेकर क़ुर्बानी और अक़ीक़ह दुरुस्त है।

अल्लामा सदरुश शरिअह अलैहिर्रहमा से एक सवाल किया गया कि ज़ैद ने अपने एक दोस्त से कह दिया कि एक बकरा या भेड़ मेरे लिए भी ले आना और क़ुर्बानी के बाद या क़ुर्बानी के दिन (3 दिन) खत्म होने पर क़ीमत अदा की तो क़ुर्बानी का सवाब मिलेगा या नहीं ? और क़र्ज़ लेकर क़ुर्बानी करना कैसा है ?

तो हुज़ूर सदरुश शरीअह अलैहिर्रहमा ने जवाब में फरमाया जब ज़ैद को उसने दे दिया तो ज़ैद उसकी क़ुर्बानी कर सकता है इसमें कोई हर्ज नहीं और क़ुर्बानी की क़ीमत पहले ही देना ज़रूरी नहीं, हां मिल्क (कब्ज़ा) ज़रूरी है
(फ़तावा अमजदया पार्ट 3 पेज़ नo 315)

चूंकि क़ुर्बानी व अक़ीक़ह के हुक्म एक तरह हैं तो मालूम हुआ कि क़ुर्बानी व अक़ीक़ह वगैरह में पहले ही रूपये देना ज़रूरी नहीं बल्कि जानवर का मालिक होना ज़रूरी है और जब कसाई ने उसको मालिक बना दिया अगरचे रूपये नहीं लिया तो अक़ीक़ह हो गया।

हां अक़ीक़ह करने वाला सिर्फ गोश्त लेता है और उसकी क़ीमत देता है सर,पैर,कलेजी, फेफड़ा वगैरह नहीं लेता है तो इस सूरत में अक़ीक़ह नहीं होगा।वल्लाहु तआला आलमु बिस्सवाब 

लेखक
 मुहम्मद अयाज़ हुसैन तस्लीमी (बरेली शरीफ)
हिन्दी अनुवादक
 मुजस्सम हुसैन मिस्बाही (गोड्डा झारखण्ड)
दिनांक - 13 अगस्त 2025
मसाइले शरईया ग्रुप
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