या अली या गौस कहना कैसा है ?

0

या अली या गौस कहना कैसा है ?

सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किरान इस मसला में की या रसूलूल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम या मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, या अली, या गौस, या ताजुशरिया कहना कैसा है ?
साईल : मोहम्मद निहाल अहमद (भागलपुर बिहार)

जवाब : कुरान व हदीस से साबित है कि हुजूर नबी ए पाक सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को लफ्जे या से निदा करना, दूर से या नज़दीक से पुकारना जायज़ है, उनकी ज़ाहिरी जिंदगी में भी और विसाल के बाद भी जायज़ और बाअसे बरकत है, कुरान व अहादीस व अमले सहाबा और हर नमाज़ी का नमाज़ में सलाम अर्ज़ करना यानी अय्युहन नबी पढ़ना इस पर रौशन दलीलें मौजूद हैं, बद अक़ीदा लोग या रसूलल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कहने वाले को मुशरिक कहते हैं, लफ्ज़ या से पुकारने वाले पर शिर्क का फतवा लगता है, कुरान पाक में अल्लाह  ने अपने प्यारे महबूब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को या से निदा फरमाया है मसलन

’’یا ایھا النبی! یا ایھا الرسول!یا ایھا المزمل!یا ایھا المدثر ‘‘

सहाबा ए किराम आपकी ज़ाहिरी जिंदगी में भी और विसाल के बाद भी या से पुकारते रहे
जैसा कि हज़रत सैयदना अबू बकर सिद्दीक़ रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू की वसीयत के मुताबिक़ आपका जनाज़ रौज़ा ए मुबारक पर ले जाकर रख दिया गया और हज़रात ए सहाबा किराम रिज़वानुल्लाही तआला अलैहीम अजमईन ने अर्ज़ की अस्सलामु अलैकुम या रसूलल्लाह  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अबू बकर सिद्दीक़  रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू है इजाज़त चाहते हैं, (आपके पास दफन होने की) फिर उसके बाद दरवाज़ा मुबारक खुल गया और आवाज़ आई कि हबीब को हबीब से मिला दो,

’’خرج ابْن عَسَاکِر عَن عَلیّ بن أبی طَالب قَالَ لما حضرت أَبَا بکر الْوَفَاۃ أقعدنی عِنْد رَأسہ وَقَالَ لی یَا عَلیّ إِذا أَنا مت فغسلنی بالکف الَّذِی غسلت بِہِ رَسُول اللہ صلی اللہ عَلَیْہِ وَسلم وحنطونی واذہبوا بِی إِلَی الْبَیْت الَّذِی فِیہِ رَسُول اللہ صلی اللہ عَلَیْہِ وَسلم فَاسْتَأْذنُوا فَإِن رَأَیْتُمْ الْبَاب قد فتح فادخلوا بِی وَإِلَّا فردونی إِلَی مَقَابِر الْمُسلمین حَتَّی یحکم اللہ بَین عبادہ قَالَ فَغسل وکفن وَکنت أول من بَادر إِلَی الْبَاب فَقلت یَا رَسُول اللہ ہَذَا أَبُو بکر یسْتَأْذن فَرَأَیْت الْبَاب قد فتح فَسمِعت قَائِلا یَقُول ادخُلُوا الحبیب إِلَی حَبِیبہ فَإِن الحبیب إِلَی الحبیب مشتاق‘‘

(तफसीरे कबीर पाठ 5 पेज 378 नुज़हतुल मजालिस पाठ 3 पेज 198)

अगर या रसूलल्लाह कहना शिर्क होता तो सैयदना सिद्दीक़ ए अकबर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू इस तरह की वसीयत ना करते और ना ही सहाबा ए किराम रिज़वानुल्लाही तआला अलैहीम अजमईन कभी या रसूलल्लाह कहते, मालूम हुआ कि या रसूलल्लाह या हबीबल्लाह कहना जायज़ व दुरुस्त है,इसी तरह या अली या गौस या ताजुश्शरिया भी कहना जाइज़ व दुरुस्त है कि हुजूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने बदर के मकतूल लोको या फलां बिन फलां कह कर पुकारा था,अलबत्ता या मोहम्मद कहना नाजायज़ है कि यह सुए अदब यानी अदब के खिलाफ है जैसे वालिद, पीर, उस्ताद को नाम लेकर पुकारना मना है की बेअदबी है तो नबी करीम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का नाम लेकर पुकारना क्यों कर जायज़ होगा इरशाद ए खुदा बंदी है

’’ لَا تَجْعَلُوْا دُعَآئَ الرَّسُوْلِ بَیْنَکُمْ کَدُعَآئِ  بَعْضِکُمْ  بَعْضًا ‘‘

रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के पुकारने को आपस में ऐसा ना ठहरा लो जैसा तुम मैं एक दूसरे को पुकारता है.
(कंजुल ईमान सूरह नूर आयत नंबर 63)


 अज़ क़लम

फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी उतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top