(क्या बिला तजवीद कुरान पढ़ना हराम है ?)
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
किया फरमाते हैं उलमाए किराम इस मसअला में कि किया तजवीद के खिलाफ क़ुरआन शरीफ पढ़ना हराम है ?
साइल:- सैयद अफ़्फ़ान रज़ा क़ादरी (महाराष्ट्र)
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातहू
अल'जवाब:सबसे पहले तजवीद के मुताल्लिक़ समझें!
जिस जगह से हर्फ़ निकलता है उसको मखरज कहते हैं और जिस अंदाज़ से हर्फ़ अदा होता है उसको सिफ़त कहते हैं, मखरज और सिफ़त के साथ हर्फ़ अदा करने को तजवीद कहते हैं, और तजवीद के खिलाफ़ पढ़ने को लेहन कहते हैं।
अब लेहन दो तरह की होती है
(1) लेहने खफ़ी= यानि छोटी गलती, जैसे - गुन्ना, इख़्फ़ा, मद, इक़लाब, इदगाम, इज़हार वगैरह न करना इस तरह पढ़ने से क़बाहत (ख़राबी,ऐब) लाज़िम नहीं आती!
(2) लेहने जली= यानि बड़ी ग़लती, जैसे - ज़ेर को ज़बर, ज़बर को ज़ेर, पेश को ज़बर या ज़ेर पढ़ना, इसी तरह ط को ت में, ث को س में, ع को ا में ظ को ض، ذ، ز में बदल कर पढ़ना इसी तरह पूरे अल्फ़ाज़ को बदलना मुशद्दद को मुखफ़्फ़फ़ या मुखफ़्फ़फ़ को मुशद्दद, मुतहर्रिक को साकिन या साकिन को मुतहर्रिक वगैरह वगैरह अदा करना यह सब लेहने जली कहलाता है, इस तरीक़े से क़ुरआन शरीफ को पढ़ना हराम सख्त हराम है, बहुत मौक़े पर ऊपर जो बताया गया ऐसी गलतियों पर गलत माना और मतलब हो जाता है,
लिहाज़ा फ़िक़्ह (शरीअत) में जहां लेहन से पढ़ने को जो हराम कहा गया है उससे मुराद लेहने जली है, हुज़ूर सदरुश शरीअह मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा लिखते हैं, लेहने (जली) के साथ क़ुरआन पढ़ना हराम है और सुनना भी (बहारे शरीअत पार्ट 1 पेज़ 557 मकतबुल मदीना, दिल्ली)वल्लाहु तआला आलमु बिस्सवाब
लेखक
उबैदुल्ला हंफी (बरेली शरीफ)
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन मिस्बाही (गोड्डा झारखण्ड)
दिनांक: 12 अगस्त 2025
मिनजानिब
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