(आप का विसाल)

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(आप का विसाल)

आप 28 मुहर्रम बरोज़ सनीचर नमाज़े फजर के बाद अपने खुलफा को क़रीब बुलाया, खुसूसियत से इन खुलफा ए किराम का नाम लिया जाता है।

हज़रत नुरुल ऐन, हज़रत मुलकुल अमरा, मलिक महमूद, शैख मुहम्मद मुईनुद्दीन, बाबा खादिम हुसैन, शैख नजमुद्दीन असफहाई, शैख मुहम्मद कुर्रे यतीम, शैख अबूल मकारिम, शैख मुहम्मद अबूल वफा खवारज़ी, शैख शमसुद्दीन ओधी, और बहुत से खुलफा व अकाबिरीन हाज़िरे बारगाह थे।

आप ने बाबा हुसैन खादिम को तबर्रुकात का बकचा लाने का हुक्म दिया, तबर्रुकात का बकचा और तमाम किताबें जिस का तअल्लुक़ गौसुल आलम की ज़ाते अक़द्दस से था, तबर्रुकात के उस बकचा में चार खिर्क़े थे, जो की आप को चार मुख्तलिफ बुजुर्गाने दीन से मिला था एक आपके पीरो मुर्शिद अल हाज अलाऊल हक़ पंडवी से मिला था, दूसरा विलायते चिश्त के सज्जादा नशीन से मिला था, तीसरा शैखुल इस्लाम से मिला था (जो कि उस वक़्त मुल्के शाम के शैखुल इस्लाम) थे, चौथा हज़रत जलालुद्दीन नजारी जहानिया जहां गश्त से मिला था, इस तमाम खिर्क़ो को अाप ने अपने जनशीने अव्वल अल हाज नुरुल ऐन रहमतुल्लाहि अलैह को अता फरमायाा और फातिहा पढ़ा।

नमाज़े ज़ोहर का वक़्त आ गया कमज़ोरी की वजह से आपने नूरुल ऐन को इमामत का फर्ज़ अदा करने का हुक्म दिया (और खुद मुक़तदी बन कर नमाज़ अदा की) नमाज़े ज़ोहर खत्म हुई तो आप की हालत कुछ और ज़्यादा खराब हो गई।

आप अपने बिस्तर पर लेट कर आराम फरमाने लगे लेकिन थोड़ी ही देर बाद आपने फौरन क़व्वालों को तलब फरमाया और उन्हें हुक्म दिया कि हज़रत शैख सअदी रहमतुल्लाहि अलैह के अशआर पढ़े जाएं और क़व्वालों ने यह शेअर पढ़ा

گر بدست تو آمدہ است اجلم 

قدر  ضینہ  بما   جری   القلم

आप पर एक वजदानी कैफियत तारी हो गई और क़व्वालों ने जब यह शेअर पढ़ा

سیر نبید جمال جا ن آ را 

جان سپارو نگار خنداں را

 خوب تر زین دگرچہ باشد کار

یار خندان رودبجانب یار

तो आप मर्गे बिस्मिल की तरह तड़पने लगे और इसी हालत में रुह क़फस अंसरी से परवाज़ कर गई।

انّا للّٰہ وَاِنّا اِلیہ راجعُون

मौला अज़्ज़ व जल की बारगाह में दुआ है मौला करीम अहले सुन्नत वल जमाअत के जुम्ला अफराद को हुज़ूर सैय्यद मखदूम अशरफ जहांगीर सिमनानी रहमतुल्लाहि अलैह के नक़्शे क़दम पर चलाए और पीरो मुर्शिद हुज़ूर सैय्यद सुहेल मियां मद्दज़िलहुल आली नुरानी के सदक़ा ए तुफैल खात्मा ईमान पर फरमाए। (आमीन) बजाहे हबीबीहिल करीम अलैहिस्सलातु वत्तसलीम

अज़ क़लम : फक़ीर ताज मुहम्मद क़ादरी वाहिदी

3 रबिउल अव्वल 1435 हिजरी मुताबिक़ 5 जनवरी 2014 बरोज़ इतवार

हिंदी अनुवादक : मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर

मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र

4 रबिउल अव्वल 1447 हिजरी मुताबिक़ 27 अगस्त  2025 ब रोज़ इतवार


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