( ढोल ताशा बजाना हराम व गुनाह है)
ढोल ताशा बजाना शरअन हराम व गुनाह है अल्लाह तआला इरशाद फरमाता है
عن مجاہدوتفسیرہ بالغناء والمزامیر واللہو والباطل ‘‘اھ
यानी और डगादे उन में से जिस पर क़ुदरत पाए अपनी आवाज़ से
(सूरह इसराइल आयत 64)
बाज़ उलाम ए किराम ने फरमाया इस से मुराद गाने बजे लहव व लअब की आवाज़ें हैं , तफसीरे कबीर में ज़ेरे आयते करीमा है
قال ابن عباس :معناہ بدعائک اِلیٰ معصیۃ اللّٰہ وکل داع اِلیٰ معصیۃ اللّٰہ فہو من جند اِبلیس ،وقیل:اراد بصوتک الغناء والمزا میر واللہو واللعب۔‘‘اھ
(जिल्द 7 सफा 368)
तफसीर खाज़िन में है
قیل اراد بصوتک الغنا واللہو واللعب
(जिल्द 3 सफा 136)
तफसीरे रुहुल मआनी में है
عن مجاہدوتفسیرہ بالغناء والمزامیر واللہو والباطل ‘‘اھ
(जिल्द 9 सफा 161)
मज़कूरा इबारतों का खुलासा यह है कि एे शैतान ! इनमें से जिस पर तू क़ुदरत पाए अपनी आवाज़ से, गाने से, बजाने से, या मज़ामीर के साथ या लहव व लअब के साथ हरकत दे यानी डगमगा दे, तो गाने बजाने को अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त ने शैतानी आवाज़ करार दिया।
हदीस शरीफ में है
لیکونن من أ متی اقوام یستحلون الحروالحریر والخمر والمعازف۔‘‘اھ
यानी : ज़रूर मेरी उम्मत में वह लोग होने वाले हैं जो हलाल ठहराएंगे औरतों की शर्मगाहें यानी ज़ना और रेश्मि कपड़ों और शराब और बाजों को।(बुखारी शरीफ जिल्द 2 सफा 837)
दूसरी जगह हुज़ूर अक़द्दस सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया
صوتان ملعونان فی الدنیا والاٰخرہ:مزمار عندنعمۃ ورنۃ عند مصیبۃ
यानी दो आवाज़ें दुनिया व आखिरत में मलऊन हैं नेअमत के वक़्त बाजे की आवाज़ें और मुसीबत के वक़्त रोने की आवाज़.....।(कंज़ुल अमाल जिल्द 15 सफा 219,222)
दुसरी हदीस में है
نہی عن ضرب الدف ولعب الصنج وضرب الزمارہ
यानी आक़ा सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने (झांझ वाले) दफ के बजाने और सिनज के खेलने और मज़ामीर के बजाने से मना फरमाया......।(कंज़ुल अमाल जिल्द 15 सफा 219)
नीज़ एक जगह और हुज़ूर रहमते दो आलम सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फरमाते हैं
أمرنی ربی عزوجل بمحق المعازف والمزامیر ۔‘‘اھ ملخصاً
यानी अल्लाह तआला ने बाजों और मज़ामीर के मिटाने का मुझे हुक्म दिया।(मिशकात शरीफ सफा 318)
हज़रत मुल्ला अली क़ारी अलैहिर्रहमा वर्रिज़वान इस हदीस शरीफ के तेहत फरमाते हैं
أی بمحواٰلات اللہو فی النہایۃ العزف اللعب بالمعازف وھی الدفوف وغیرہا مما یضرب۔‘‘اھ
(मिरक़ातुल मफातीह जिल्द 7 सफा 196)
नीज़ मिशकात शरीफ में दुसरी जगह है
أن النبی صلی اللہ علیہ وسلم نھی عن الخمر والمیسروالکوبۃ۔‘‘اھ
(मिशकात शरीफ सफा 318)
इस हदीस शरीफ के तेहत मिरक़ातुल मफातीह में है
الکوبۃ قیل الطبل ای الصغیر وقیل البربط۔
(जिल्द 7 सफा 196)
यानी रसूले पाक अलैहिस्सलाम ने शराब व जूवा और ढोल बाजा से मना फरमाया।
फिक़्ह की मशहूर व मअरूफ किताब "रद्दुल मोहतार" में है
والاطــــلاق شــامــل لنـفــس الــفـعــل واسـتـمــاعـہ کالر قص والسـخریـۃ والـتــصــفــیــق وضــرب الاوتـار مـن الطنبور والبربط والرباب والقانون والــمــزمــاروالــصــنــج والـبــوق فــانــہــا مــکــروہــــۃ وانہا زی الکفار واستماع ضرب الـدف والـمزمار وغـیـرذٰلک حرام۔
यानी और लहव का इतलाक़ फेल के करने और सुनने दोनों को शामिल है जैसा नाचना, मज़ाक़ करना, ताली बजाना, बजाना साज़ के तार बजाना, तंबूर, ऊद, रबाब, क़ानून, मज़ामीर, जंग, बूक़ है कि यह मकरुहे तहरीमी है और बेशक यह कुफ्फार की आदत व अलामत है और (झांझ वाले) दफ और मज़ामीर वगैरा बाजों का सुनना हराम है........।(रद्दुल मोहतार सफा 395)
नीज़ उसी में दुसरी जगह है
الملاہی کلہا حرام قال ابن مسعود صوت اللہو والغناء ینبت النفاق فی القلب کما ینبت الماء النبات
(जिल्द 6 सफा 384)
और फतावा बज़ाज़िया में है
استماع صوت الملاہی کالضرب بالقضیب ونحوہ حرام لقولہ علیہ السلام استماع الملاہی معصیۃ والجلوس علیہا فسق والتلذ ذبہا کفرأی بالنعمۃ‘‘اھ
(जिल्द 6 सफा 359)
अल बहरुर्राइक़ में है
یکرہ استماع صوت اللہووالضرب
(जिल्द 8 सफा 207)
और सनदुल मुतकल्लिमीन उमदतुल मुहक़्क़ीन सरकारे आला हज़रत क़ुदुस सरह फरमाते हैं
"ढोल बजाना हराम है........।"
(फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 189 निस्फ अव्वल)
हुज़ूर सदरुश्शरिआ अलैहिर्रहमा फरमाते हैं
"तमाम मलाही, मआज़फ, मज़ामीर नाजायज़ व हराम.........।"
(फतावा अमजदिया : 140)
नीज़ इसी के सफा 75 पर रक़म तराज़ है
"ढोल बजाना औरतों का गाना, नाच, बाजा यह सब हराम है.............।"
हुज़ूर शारेह बुखारी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं
"ढोल ताशे जायज़ नहींं बाजे ताशे बजाना खुशी की अलामत है, बहर हाल ताज़ियादारी और उसके जुम्ला मरासिम नाजायज़ व हराम हैं.............।"
(माह नामा अशरफिया शुमारा, अप्रैल 1999 ईसवी)
फतावा अजमलिय्या में है
"मुहर्रम में ढोल ताशे बजाना और मातम करना हराम व नाजायज़ है............।"
(जिल्द 4 सफा 37)
हज़रत मुफ्ती अबरार अहमद साहब अमजदी रक़म तराज़ हैं
"क़ुर्बानी से ले कर आशूरा मुहर्रम तक ढोल बजाना और शबे अशूरा में ताज़िया के पीछे पीछे मर्दों औरतों का ढोल ताशा बजाते हुए जाना यह सब नाजायज़ व गुनाह हैं ऐसा ही फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 189 / फतावा अमजदिया जिल्द 4 सफा 75 पर है"
(नजरिया तारीख 12 रबिउल गौस 1430 हिजरी)
इन आयातो अहादिस और फिक़्ही जुज़इय्यात का हासिल यह है कि ढोल ताशा बजाना हराम है।
लिहाज़ा मुसलमानों पर लाज़िम है कि इस फेले हराम के इरतिकाब से बाज़ आएं वरना सख्त गुनहगार होंगे।
अल्लाह तआला मुसलमानों को हिदायत नसीब फरमाए और शरीअते ताहिरा पर करने की तौफिक़ अता फरमाए (आमीन)
अज़ क़लम
नीज़ उसी में दुसरी जगह है
الملاہی کلہا حرام قال ابن مسعود صوت اللہو والغناء ینبت النفاق فی القلب کما ینبت الماء النبات
(जिल्द 6 सफा 384)
और फतावा बज़ाज़िया में है
استماع صوت الملاہی کالضرب بالقضیب ونحوہ حرام لقولہ علیہ السلام استماع الملاہی معصیۃ والجلوس علیہا فسق والتلذ ذبہا کفرأی بالنعمۃ‘‘اھ
(जिल्द 6 सफा 359)
अल बहरुर्राइक़ में है
یکرہ استماع صوت اللہووالضرب
(जिल्द 8 सफा 207)
और सनदुल मुतकल्लिमीन उमदतुल मुहक़्क़ीन सरकारे आला हज़रत क़ुदुस सरह फरमाते हैं
"ढोल बजाना हराम है........।"
(फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 189 निस्फ अव्वल)
हुज़ूर सदरुश्शरिआ अलैहिर्रहमा फरमाते हैं
"तमाम मलाही, मआज़फ, मज़ामीर नाजायज़ व हराम.........।"
(फतावा अमजदिया : 140)
नीज़ इसी के सफा 75 पर रक़म तराज़ है
"ढोल बजाना औरतों का गाना, नाच, बाजा यह सब हराम है.............।"
हुज़ूर शारेह बुखारी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं
"ढोल ताशे जायज़ नहींं बाजे ताशे बजाना खुशी की अलामत है, बहर हाल ताज़ियादारी और उसके जुम्ला मरासिम नाजायज़ व हराम हैं.............।"
(माह नामा अशरफिया शुमारा, अप्रैल 1999 ईसवी)
फतावा अजमलिय्या में है
"मुहर्रम में ढोल ताशे बजाना और मातम करना हराम व नाजायज़ है............।"
(जिल्द 4 सफा 37)
हज़रत मुफ्ती अबरार अहमद साहब अमजदी रक़म तराज़ हैं
"क़ुर्बानी से ले कर आशूरा मुहर्रम तक ढोल बजाना और शबे अशूरा में ताज़िया के पीछे पीछे मर्दों औरतों का ढोल ताशा बजाते हुए जाना यह सब नाजायज़ व गुनाह हैं ऐसा ही फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 189 / फतावा अमजदिया जिल्द 4 सफा 75 पर है"
(नजरिया तारीख 12 रबिउल गौस 1430 हिजरी)
इन आयातो अहादिस और फिक़्ही जुज़इय्यात का हासिल यह है कि ढोल ताशा बजाना हराम है।
लिहाज़ा मुसलमानों पर लाज़िम है कि इस फेले हराम के इरतिकाब से बाज़ आएं वरना सख्त गुनहगार होंगे।
अल्लाह तआला मुसलमानों को हिदायत नसीब फरमाए और शरीअते ताहिरा पर करने की तौफिक़ अता फरमाए (आमीन)
अज़ क़लम
मुहम्मद मेराज अहमद क़ादरी मिस्बाही
साहब क़िब्ला दामतुल बरकातहुमुल आलिया
रईसुल इफ्ता
रईसुल इफ्ता
रज़वी दारुल इफ्ता मक़ाम व पोस्ट हसनगढ़ परैला जिला बस्ती
हिंदी अनुवादक
मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी
सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र