(मोरौवजा ताज़ियादारी में किसी तरह मदद करना कैसा है ?)

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 (मोरौवजा ताज़ियादारी में किसी तरह मदद करना कैसा है ?)


जब मोरौवजा ताज़ियादारी शरीअते ताहिरा में नाजायज़ व हराम है तो उस में किसी तरह की मदद करना भी हरगिज़ हरगिज़ दुरुस्त नहीं।अल्लाह तआला फरमाता है
تَعَاوَنُوْا عَلَی الْبِرِّوَالتَّقْویٰ وَلَا تَعَاوَنُوْاعَلَی الْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ
(सुरह माएदा आयत 2)

यानी नेकी और परहेज़ गारी पर एक दुसरे की मदद करो और गुनाह पर और ज़्यादती पर बाहम मदद ना दो।(कंज़ुल ईमान)

और हज़रत अल्लामा शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दीस देहलवी  अलैहिर्रहमा से दरियाफ्त किया गया कि किसी तरह ताज़ियादारी की मदद करना कैसा है ?
इस सवाल के जवाब में आप तहरीर फरमाते हैं
ایں ہم جائز نیست چراکہ اعانت بر معصیت می شود واعانت برمعصیت غیر جائز
यानी यह भी नाजायज़ है इसलिए की गुनाह पर मदद हो जाती है और गुनाह पर मदद नाजायज़ नहीं।
(फतावा अज़ीज़िया जिल्द 1 सफा 77 / बरवाला खुतबाते मुहर्रम सफा 465)
मुजद्दीदे आज़म तीनों मिल्लत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खां अलैहिर्रहमा वर्रिज़वान तहरीर फरमाते हैं
"ताज़िया में किसी क़िस्म की इमदाद जायज़ नहींं"
قال تعالیٰ : وَلَا تَعَاوَنُوْا عَلَی الْاِثْمِ وَالْعُدْوَانِ:اھ
(फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 208)
हुज़ूर सदरुश्शरिआ बदरुत्तरिक़ा अल्लामा अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा मुसन्निफ बहारे शरीअत तहरीर फरमाते हैं
"जिस तरह ताज़ियादारी नाजायज़ उस में इआनत भी नाजायज़ है।(फतावा अमजदिया जिल्द 4 सफा 185)

अज़ क़लम
मुहम्मद मेराज अहमद क़ादरी मिस्बाही 
साहब क़िब्ला दामतुल बरकातहुमुल आलिया
रईसुल इफ्ता 
रज़वी दारुल इफ्ता मक़ाम व पोस्ट हसनगढ़ परैला जिला बस्ती
हिंदी अनुवादक 
मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी 
सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
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