(मीलदे मुस्तफा 07)

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(मीलदे मुस्तफा 07)

सवाल14: अगर विलादत 12 रबीउल अव्वल को हुई तो वफ़ात भी उसी तारीख़ यानी 12 रबीउल अव्वल को हुई फिर इस दिन खुशी कैसे मना सकते हैं ? ये तो ग़म मनाने का दिन हुवा। 

जवाब 14:याद रखें कि सोग ( ग़म मनाना ) सिर्फ तीन दिन है सिवाए बेवा के : किसी औरत के लिये जो अल्लाह और आख़िरत पर ईमान रखती है, हलाल नहीं कि अपने शौहर के सिवा किसी मय्यित पर तीन दिन से ज़्यादा सोग मनाए। ( सहीह बुखारी , हदीस 1280, 

और ये भी याद रखें कि एक लम्हा के लिये अपनी शान के मुताबिक मौत का मज़ा चखने के बाद आका ﷺ ज़िन्दा हैं। 12 रबीउल अव्वल को ही विलादत और वफ़ात दोनों होने के बावजूद भी इस दिन ग़म नहीं मनाया जा सकता क्योंकि जुमुआ के दिन आदम अलैहिस्सलाम बनाए गए और उसी दिन विसाल भी हुआ फिर भी अल्लाह तआला ने जुमुआ को मुसलमानों के लिये ईद का दिन बनाया है जैसा कि पहले हदीस और तफ़सील गुज़र चुकी। इसी लिये 12 रबीउल अव्वल को खुशी मनाई जाएगी, ग़म नहीं मनाया जाएगा। 

     और हाँ ! मुखालिफ़ीन को क़यामत के दिन अल्लाह तआला से ये सवाल ज़रूर करना चाहिये कि जुमुआ को ही आदम अलैहिस्सलाम की तख़लीक और विसाल के बावुजूद उसे ईद क्यों करार दिया ? ग़म और खुशी का दिन बना कर ग़म व अफ़सोस जाहिर करने से क्यों मना कर दिया ?(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 17)

सवाल 15: सहाबा केराम रिदवानुल्लाहि अन्हुम ने जश्ने ईद मीलादुन्नबी ﷺ नहीं मनाया, तो हम क्यों मनाएँ ? 

जवाब 15:सहाबा केराम रिदवानुल्लाहि अन्हुम का कोई अमल करना तो हमारे लिये हुज्जत है लेकिन कोई अमल न करना हमारे लिये हुज्जत नहीं। आप खुद बताएँ कि सहाबा केराम रिदवानुल्लाहि अन्हुम ने ज़ेर - ज़बर वाला कुरआन पढ़ा है ? अगर नहीं तो आप क्यों पढ़ते हैं ? क्या सहाबा केराम ने कभी ये कहा कि बुख़ारी शरीफ, कुरआन शरीफ़ के बाद सबसे मोतबर किताब है ? अगर नहीं तो आप क्यों कहते और मानते हैं ? क्या सहाबा ने कभी ख़त्मे बुखारी शरीफ़ किया ? क्या कभी जलस-ए- दस्तारबंदी की ? अगर नहीं तो आप क्यों करते हैं ? इस तरह की सैकड़ों मिसालें दी जा सकती हैं जिन्हें आपने और आपकी जमाअत ने जाइज़ कर रखा है लेकिन जब बात जश्ने ईद मीलादुन्नबी ﷺ की आती है तो ईद मीलादुन्नबी ﷺ नाजाइज़ क्यों ? क्या कोई साबित कर सकता है कि आमदे रसूल ﷺ पर किसी सहाबी को ग़म हुआ या किसी सहाबी को खुशी न हुई हो ? जश्ने ईद मीलादुन्नबी ﷺ की अस्ल कुरआन, हदीस और सहाबा केराम से साबित है। काम के तरीके में फर्क हो सकता है पर अस्ल मौजूद है।

सवाल16 :ईद मीलादुन्नबी ﷺ के मौके पर नात शरीफ पढ़ी जाती है, क्या रसूलुल्लाह ﷺ के ज़माने में भी नात पढ़ी गई 

जवाब 16: नात हमेशा से अकीदतों और मुहब्बतों को ज़ाहिर करने का ज़रिया और हुजूर ﷺ की मुहब्बत को बढ़ावा देने का ज़रिया ख़्याल की जाती रही है। सहाबा के ज़माने में बाक़ाइदा नात की महफिलें सजा करती थीं जिनमें हुजूर ﷺ और इस्लाम के दुश्मनों की बेहूदा बातों के जवाबात दिये जाते थे। उम्मुल मोमिनीन हज़रत आइशा रादिअल्लाहु तआला अन्हुमा इरशाद फ़रमाती हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ मस्जिदे नबवी में हस्सान बिन साबित रादिअल्लाहु तआला अन्हु के लिये मिम्बर रखवाते थे ताकि वो उस पर खड़े होकर हुजूर ﷺ की तारीफ़ में फ़ख़िरया अशआर ( नात शरीफ ) पढ़ें या यूँ बयान किया कि वो रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ से काफिरों के इल्ज़ामों का जवाब दें और रसूलुल्लाह ﷺ हज़रत हस्सान रादिअल्लाहु तआला अन्हु के लिये फ़रमातेः अल्लाह तआला रूहुलकुद्स ( हज़रत जिबरईल अमीन ) के ज़रिये हस्सान की मदद फ़रमा जब तक कि वो रसूलुल्लाह ﷺ की तरफ से काफिरों के इल्ज़ामों का जवाब देते रहें या रसूलुल्लाह ﷺ की शान में फ़ख़िरया अशआर पढ़ते रहें। ( सहीह बुखारी , हदीस : 453,(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 19)

सवाल 17: ईद मीलादुन्नबी ﷺ के मौके पर नात शरीफ पढ़ी जाती है, क्या रसूलुल्लाह ﷺ के ज़माने में भी नात पढ़ी गई 

जवाब 17:हज़रत अब्दुल्लाह बिन दीनार रदियल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं कि उन्होंने हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु को हज़रत अबू तालिब के इस शेर को नमूने के तौर पर पेश करते हुए सुनाः  वो गोरे ( मुखड़े वाले सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ) जिनके चेहरे के वसीले से बारिश माँगी जाती है, यतीमों की फरयाद सुनने वाले, बेवाओं के सहारा हज़रत उमर बिन हमज़ा रदियल्लाहु तआला अन्हु कहते हैं कि हज़रत सालिम ( बिन अब्दुल्लाह बिन उमर रदियल्लाहु तआला अन्हु ) ने अपने वालिदे माजिद से रिवायत की कि कभी मैं शाएर की इस बात को याद करता और कभी हुज़ूर ﷺ के चेहर - ए - अकदस को तकता कि इस ( रूखे ज़ेबा ) के वसीले से बारिश माँगी जाती है तो आप ﷺ ( मिम्बर से ) उतरते भी नहीं कि सारे परनाले बहने लगते।

वो गोरे ( मुखड़े वाले ﷺ ) जिनके चेहरे के वसीले से बारिश माँगी जाती है, यतीमों की फरयाद सुनने वाले, बेवाओं के सहारा ऊपर ज़िक्र शेर अबू तालिब का है। ( सहीह बुखारी, हिस्साः 1, हदीसः 963,(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 21)

मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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