(जल्वए आला हज़रत 12)
➲ पेशे नज़र किताब में जो कुछ लिखा गया है वह तसानीफे आला हज़रत के हवाले से लिखा गया है हर मज्मून के आखिर में उस किताब का नाम और सफः नम्बर वगैरह दर्ज कर दिया गया है जिससे वह मज़मून माखूज है गोया कि हमने तसानीफे आला हज़रत को माखज़ व मरजा करार दिया है और इसी हैसियत से उनका हवाला भी दिया है अगरचे तसानीफे आला हज़रत का माखज भी दीगर कुतुबे शरीआ हैं। ख्याल यह है कि आज हमें तसानीफे आला हज़रत को इसी तरह माखज़ व मराजे करार देने का हक है जिस तरह दूसरे अइम्मा व उलमा की तसानीफ को माखज़ समझा जाता है जबकि सबका मंबझू व सर चश्मा आयात व अहादीस ही हैं फिर क्या वजह है कि हम तसानीफे आला हज़रत को माखज़ की हैसियत से पेश न करें। ज़माना माजी में यह हवाला दिया जाता था कि " इमाम गजाली फरमाते हैं या इमाम राजी व इमाम जलालुद्दीन सुयूती फरमाते हैं : इसके बाद फिर किसी हवाले की ज़रूरत नहीं रहती थी न इसके सुबूत में किसी किताब का नाम लिखा जाता था जबकि उन अइम्मा किराम की जुमला बातें भी खुद उनकी जे हनी काविश या दिमागी पैदावार की न होती थीं बल्कि वह भी शरई दलाइल के हवाले से कहते थे इसी तरह आज ज़माना हाल में अगर यह कहा जाए कि " आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी फरमाते हैं तो इसके बाद फिर दीगर हवालों की ज़रूरत क्यों है!?
➲ जबकि यह भी हवाले और शरई दलाइल के बगैर कोई बात नहीं कहते।
••• ➲ आलम यह है कि आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरैलवी कुऐसा सिर्रहू जब किसी भसअले के सुबूत में दलाइल व शवाहिद पेश करने पर आते हैं तो वक्त के राजी व गजाली से कम दिखाई नहीं देते , अहादीस व आसार पेश करने पर आते हैं तो इमाम बुखारी व इमाम मुस्लिम के हम्सर व हमपाया मालूम होते हैं।
••• ➲ इस सबके बावजूद दौरे हाज़िर के तकाज़ों का लिहाज़ा करते हुए मैंने आयाते कुरआनिया में सूरत व आयत नम्बर और अहादीस में उनकी असल किताबों के हवाले भी दर्ज कर दिए हैं जिनसे आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदेसा सिरहू ने हदीसों का इस्तिखराज फरमाया है और कहीं कहीं दीगर कुतुब के हवालों का इन्दराज भी अमल में आया है।...
बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-50
मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)