(जल्वए आला हज़रत 06)
आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत !?
➲ आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी ने जिस दौर में बरैली शरीफ की सर जमीन पर होश व खिरद की आँखें खोली वह इंतिहाई भयानक व पुर आशोब दौर था , आसमाने हिन्द पर कुफ्र व शिर्क और विदआत व खुराफात के बादल मंडला रहे थे खुश अकीदा मुसलमानों को सिराते मुस्तकीम व राहे हिदायत से हटाने की नापाक कोशिश की जा रही थी फरज़न्दाने तौहीद के इश्क व अकीदे पर शब खून और डाका डाला जा रहा था सईद व नेक रूहें मुसलमानों के अंजाम से घबरा रही थीं इंसानियत खौफजदा थी जब व इस्तिब्दाद के हाथों खुश अकीदगी का गला घूटा जा रहा था , दीनी पामर्दी व इस्तिकामत मुतजलजल हो रही थी।
➲ ऐसे भयानक दौर में कुदरत ने मुजद्दिदे इस्लाम आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरैलवी कुद्देसा सिर्रहू को तज्दीदे दीन व सुन्नत के लिए मुकर्रर फरमाया उन्होंने ताईदे गैबी से अपना फर्जे मंसबी को पूरा किया और बेमिसाल तज्दीदी कारनामे अंजाम दिए , बद अकीदों व बद मज़हबों का खुले आम रद्द व इब्ताल फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने अक्दस में नाजैबा कलिमात कहने वालों को उनके कैफरे किरदार तक पहुँचा दिया , बातिल ताकतों की सरकूबी व बीख कुनी की , बनामे इस्लाम बाद के जमाने में जितने फिरके वजूद में आए हर एक का रद्दे बलीग फरमाया उनके अन्दरूनी राज और मक्कारियों को तश्त अज़बाम व आशकारा किया गोया कि फिरका बातिला के रद्द व इताल को उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का अहम उन्सुर और जुज्वला यन्फक करार दिया उन्हीं की बदौलत दीन के भेड़ियों की पहचान व शिनाख्त हुई।
➲ इस खौफनाक दौर में अगर आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू की मसाई जमीला और उनके तज्दीदी कारनामे न होते तो दीन के डाकू मुसलमानों को भी अंग्रेजी इस्तेमार के हाथों अरजी कीमत पर फरोख्त कर देते जिस तरह मुल्क हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ का नाजाइज कला व इक्तिदार हो गया था उसी तरह यह मुसलमानों को भी असीर व कैद कर लेते , आला हज़रत की जाते सतूदा सिफात ने मुसलमानों को विकने और असीरे किस्मत होने से बचा लिया।
➲ यह वह तारीखी हकाइक हैं जिन्हें ठुकराया नहीं जा सकता तारीख के औराक इन सच्चाईयों के शाहिद व गवाह हैं!...
(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 48)
मौलाना अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)